शनिवार, 10 सितंबर 2016

कविता: आगि-आगि

आगि-आगि
सबतरि पसरल आगि
कतौ स्वार्थक आगि
कतौ बदलाक आगि
कतौ अलगाववादक आगि
कतौ साम्प्रदायिकताक आगि
आगि-आगि
सबतरि पसरल आगि
केओ जरा' रहल अछि मन
केओ जरा' रहल अछि हृदय
केओ जरा' रहल अछि देह
केओ जरा' रहल अछि घर
केओ जरा' रहल अछि देश
सब जरि झुलैस रहल अछि
आगि-आगि
सबतरि पसरल आगि
आगिक आँच धधैक रहल अछि
भ' रहल अछि सर्वश्व स्वाह :
कतौ आगि उगैल रहल अछि बन्दुक
कतौ आगि उगैल रहल अछि तोप
पूरा विश्व आगिक चुल्हामे अछि झोंकल
पजैर सकैत अछि कखनो परमाणु युद्ध
आगि-आगि
सबतरि पसरल आगि
हे मानब जीव
जीवन भेटैत अछि एकबेर
जीवनक सुख आनन्द लिअ
मानवताक संग जीव लिअ
मिझा दिऔ स्नेहक पानि सँ
सबतरि पसरल आगि !!!
:गणेश मैथिल
गुवाहाटी