शुक्रवार, 30 मार्च 2012

Natak:"JAGU"


नाटक: "जागु"




पात्र परिचय :



१. नारायण : एक गृहस्थ , उम्र ४५ वर्ष



२. लक्ष्मी:नारायण के पत्नी , उम्र ४० वर्ष



३.लाल काकी:नारायण के माए, उम्र ६५ वर्ष



४. विष्णुदेव: एक समाज सेवक , उम्र ४० वर्ष



५.अकबर:एक साधारण बुद्धिजीबी व्यक्ति , उम्र ३५ वर्ष



६.गीता :नारायण के ज्येष्ठ कन्या,उम्र १५ वर्ष



७.बिल्टू:बी.ए.पास एक बेरोजगार युवक ,उम्र २३ वर्ष



८. नन्हकू काका:एक बुजुर्ग ,उम्र ६० वर्ष



९. रहीम: १५ वर्षक अनपढ़ बालक



१०.सोहन:१३ वर्षक अनपढ़ बालक



११.मोहीत: १६ वर्षक अनपढ़ बालक


अंक प्रथम: दृश्य:प्रथम समय: राइत


(दलानक दृश्य , अषाड़क अन्हरिया राइत, लालटेन जरैत, दलान पर चिंतित मुद्रा मे नारायण टहलैत| नेपथ्य मे प्रसूति पीड़ा सँ लक्ष्मी कराहैत , थोड़े देर बाद बच्चाक जन्म आ कनबाक ध्वनि )

लाल काकी : (रुदन करैत प्रवेश ) रे नारायनमा ! रे नारायनमा !!

नारायण : की भेलई माए? की भेलई ??

लाल काकी: तोहर कर्म फुटि गेलौ रौ ! ई कुलक्षणी नामक लक्ष्मी चारीम बेटी कें जन्म देलकौया रौ ! अरे देव रौ देव !! कओन मुखे एकर पाएर हमर घर मे पड़ल रौ देव ! बेटी के बाहिड़ लगा देलकौ रौ देव !!
कोना क' चारिटा बेटी के विआहबाए रौ नारायणमा  ? देहो बिकीन लेबा' तइयो नै पार लगतौ रौ ! तोड़ा कहने छलिऔ दोसर विआह क' ले' --एहि मौगिया सँ तोड़ा बेटा नै हेतौ , मुदा , तू नै मानलाए हमर बात ! आब वंश कओना चलतौ रौ नारायणमा ?(जोड़ जोड़ सँ छाती पिटैत)

नारायण :(माए के बुझबैत ) माए! माए!! ई अहाँ किदौन कहाँ दून कियाक बजैत छी ?--एहि मे लक्ष्मी कें कोन दोष थिक ? ई त' भगवतिक कृपा ! एखन लक्ष्मी प्रसूति पीड़ा मे छथि , हुनका ऊपर एहन असहनीय  दुर्वचनक बाण नै चलाऊ !!

लाल काकी:(खौझा' क बजैत ) त' तोहर की मुन ? फूल-पान ल' आरती उतारीयनि!!

नारायण: हँ माए हँ ! लक्ष्मी आई फेर एक लक्ष्मी कें जन्म देलिहाए | माए! अहाँ जनैत छी --कन्यादान सभ सँ पैघ यज्ञ थिक | सौभाग्यवश: भगवतिक कृपा सँ हमरा चारिटा यज्ञक फल भेटबाक अवसर भेटलाए | अहाँ जुनि व्यर्थ चिंतित हौ |
      (विष्णुदेवक प्रवेश )
विष्णुदेव :लाल काकी , एना कियाक खौंझाएल छी ?

लाल काकी: ई लक्ष्मी रानी फेर बेटी बिएलिहाए !!

विष्णुदेव: ई त' हर्षक गप थिक ! बेटी के जन्म --बुझू साक्षात् लक्ष्मी के जन्म !! एहि मे एतेक खौंझेबाक कोन .....

लाल काकी:(बीचे मे टोकैत) हाँ ...हाँ ...., 'दोसरक घर जरैत छै त' तमाशा देखबाअ मे बड्ड नीक लगैत छै ...मुदा ,जखन अपन घर जरैत छै त' आगिक दाह बुझि पड़ैत छै |' अपना बेटी नै अछि ने , दूटा बेटे अछि --ताँए एहन गप निकलैया...
.
नारायण: माए....! अहाँ चुप रहब की नै ? (विष्णुदेव के)-- भाई , क्षमा करब ! माएक गप के जुनि .....

विष्णुदेव: .....भाई ! ई की करै छी ? अहाँक माए हमरो माए | हम काकी कें दुःख बुझि सकैत छीयनि ! मुदा मनुष्य की क' सकैत अछि .....??
 (लाल काकी के बुझबैत ) काकी जुनि खौंझाऊ ! कने सोचू !  पहिल- जे अहूँ  त' बेटी छी ! जौं बेटी नै  हेती त' बेटा-बेटी के जन्म के देत ?? दोसर स्त्री भ' स्त्री के प्रति दुर्यव्यव्हार , इ उचित नै थिक !
तेसर- बेटा-बेटी कें जन्म स्त्री द्वारा निर्धारित नै होइत अछि | विज्ञानं बतबैया कि बेटी-बेटा कें निर्धारण पुरुष दवारा होइत अछि |--ताँए जँ  नारायण भाई कें चारिटा बेटी भेलनि त' एहि मे लक्ष्मी भौजी कें कोनो दोष नै | ...ओ त' साक्षात् लक्ष्मी छथि |.....काकी !अहाँ के त' पाँच टा पुतौहु छथि --काएटा  लग मे रहि सेवा करै छथि ? एक लक्ष्मी भौजी छथि जेँ तन-मन-धन सँ अहाँक सेवा मे समर्पित रहैत छथि |....चलु ,एहि समय हुनका अहाँक जरुरत छन्हि | सास आ माए मे कोनो अन्तर नै होइत छै |
(लाल काकी अन्दर जाईत छथि )
    पर्दा खसैत अछि ......प्रथम दृश्य के समाप्ति |||....

दृश्य:दोसर ,




(सोइरिक दृश्य )



(नारायणक प्रवेश )







नारायण:: (लक्ष्मी सँ )...नीके छी ने ? (बच्चा कें कोरा मे उठा लैत छथि )....लक्ष्मी , ई त' बिल्कुल अहींक दोसर रूप बुझि पड़ैत अछि !



लक्ष्मी:: गीता के बाबू , हम बड्ड अभागिन छी ! हम अहाँ कें बेटा नै द' सकलौं ! माए ठीके कहै छली , अहाँ दोसर विआह क' लियह....



नारायण:: (बीचे मे )....लक्ष्मी !!...ई अहाँ की कहैत छी ? दोसर विआह ! ओ हम!! कदापि नै !!! हमरा बेटा नै भेल त' एहि मे अहाँक कोन दोष ? जँ हमरा भाग्य मे बेटा नै होएत त' चारियोटा विआह केने कोनो लाभ नै ...







लक्ष्मी::..मुदा, अहाँक वंश...







नारायण:: ....की बेटी बापक अंश नै होइत अछि ? बेटीए सँ वंश चलत
देखिलियौ, नेहरूजी कें वंश इंदिरा गाँधी सँ चलि रहल छन्हि




लक्ष्मी::..हम अहाँक भावना कें बुझैत छी , मुदा, ई समाज नै बुझत ! हमरा सब दिन निपुत्री होएबाक उलाहना सुनै पड़त








नारायण:: त' की समाजक डर सँ हम अपन जिनगी नरक बना लीअ? की हम दोसर विआह करू ? वा बेटा के इंतजार मे एक सोरहि धिया-पुता जन्माऊ ?...लक्ष्मी , समाज एहिना कहैत रहत ...भुगतअ त' अपना सभ कें पड़त
हम कहैत छी ---आब ऑपरेशन करा' लीअ
आजुक युग मे एक -स -दू धिया -पुता बड्ड भेलहि, चाहे बेटा हुए वा बेटी ...







लक्ष्मी::..हम कहिया मना केलहूँवाँ ! हम त' दोसरे बेटी के बाद ऑपरेशन कराबअ लेल माइर केने रही, मुदा, माए जिद्द करए लगली...







नारायण::...नै, आब किनको जिद्द नै नै चलतैन ! अहाँ सोइरी सँ निकलू , तखन ऑपरेशन भ' जाएत




(नारायण...नारायण ...नेपथ्य सँ नारायण के केओ सो पाडैत)...याह एलौ ...



नारायणक प्रस्थान ....(पर्दा खसैत अछि )



दोसर दृश्यक: समाप्ति

नाटक: "जागु"




दृश्य:तेसर



समय:भोर



(विष्णुदेव दालान में कुर्सी पर बैस अख़बार पढैत छथि, तहने अकबर मियां के प्रवेश )



अकबर:: राम! राम !! विष्णुदेव भाई ....









विष्णुदेव::(ध्यान तोडैत )...ओ अकबर भाई ! अस्सलाम अलैकुम ! अरे , अहाँ त' दुतिया के चाँद भ' गेल छी ! कतअ नुका रहल छलौं ? आऊ, बैसू-बैसू (अकबर कुर्सी पर बैसइत छथि )...अओर हाल-समाचार सुनाऊ
कनियाँ आ धिया -पुता सभ ठीक छथि ने ?









अकबर:: हाँ ....! (चिंतित मुद्रा में ) एखन तइक त' ठीक छथि , मुदा.....









विष्णुदेव:: ....मुदा की ? कोनो विशेष गप ??









अकबर:: भाई ! हम रोजी -रोटी कें जुगार में अपन मातृभूमि छोइड़ मुंबई गेल छलौं , मुदा, ओतअ त' साम्प्रदयिक्ताक आगि में समूचा शहर धू-धू क ' जरि रहल छै ! लोक सभ रक्त पिशाचू बनल अछि ! कतेकों लोक अकाल काल कें गाल में समां गेल ! कतेकों घर सँ बेघर भ' गेल ! कतेकों बच्चा अनाथ भ' गेल ! कतेकों नारी विधवा भ' गेली !....भाई ! हमरा त' डर लागि रहल अछि --कहीं ई आगि मिथिलांचल के सेहो ने जराए दाए ?









विष्णुदेव:: (भावुक आ संवेदनशील भाव )..नै भाई, नै ! हम मिथिलावाशी एतेक निष्ठुर आ निर्दयी नै छी ! जेहन हमर बोली मीठ अछि , तेहने कोमल आ स्नेहमयी ह्रदय अछि !...हाँ , कहिओ -काल भाई-भाई में टना-मनी भ' जाइत अछि , मुदा, एहि कें अर्थ इ नै जेँ हम एक -दोसरक घर फूँकि देब !!









अकबर:: से त' ठीके कहै छी भाई
हम मिथिलावाशी सदा सँ 'शांति आ प्रेम ' कें पूजारी रहलौंहाँए
एतअ सीता सन बेटी जन्म लेली , जेँ नारी हेतु आदर्श थिक
राजा जनक 'विदेह' कहबैत छलाह अर्थात राजा होइतो ' माया सँ मुक्त छलाह '
प्रजा हेतु स्वयं ह'र जोतलाह
एतअ कें अन्न-पानि ततेक पोष्टिदायक आ बुद्धिवर्धक छल, जेँ विद्वानक भरमार छल
मुदा,
आब लागि रहल अछि जेँ एतौ राक्षस आ अमानुष प्रवृति कें लोक जन्म ल' रहल अछि !!





विष्णुदेव:: इ सत्य थिक जेँ किछु लोक आगि लगा अपन हाथ सेकबा में लागल रहैत अछि ....





अकबर:: ...त' भाई ! एहन लोक सँ समाज कें कोना बचाएल जाए ? कारण ! अशिक्षा आ गरीबी कें अन्हार चारू दिश पसरल अछि ! एहि कें लाभ उठा समाजक दुष्ट व्यक्ति भाई-भाई कें लड़ा दैत अछि !!





विष्णुदेव:: याह त' सभ सँ पैघ समस्या थिक ! यावत लोक शिक्षित नै होएत तावत एकर पूर्ण रूपेण समाधान संभव नै






अकबर:: भाई ! की मात्र पढि-लिख लेला सँ व्यक्ति शिक्षित भ' जाइत अछि ?





विष्णुदेव:: नै, कदापि नै ! शिक्षाक अर्थ थिक प्रेम, सहयोग , ज्ञान आ अनुशासन
जँ एही में सँ एकौटाक आभाव होएत त' शिक्षा पूर्ण नै भ' सकैत अछि । जेना आहि -काहिल देखबा में अबैत अछि --बहुतों डॉक्टर , वकील , कलेक्टर आदि बहुते पढ़ल -लिखल छथि, मुदा , अनेकों असामाजिक क्रिया -कलाप में लिप्त रहैत छथि , जाहि सँ समाज के अनेको हानी होइत छै ।









अकबर:: ....अर्थात लोक के जागरूक होएबाक जरुरत अछि । लोक के इ बुझअ पड़तै कि जँ एक भाई के घर जरतै त' दोसरों के घर में आगि लगतहि । जँ एक कें नैन्ना भूखे कनतै त' दोसर कें कोना नींद हेतहि !!









विष्णुदेव:: बिल्कुल सच कहलौं ! हम पूछै छी ---जँ गाम में आगि लागैत अछि, केओ बीमार पडैत अछि , बाहिर अबैत अछि ---तखन के काज अबैया ? अपने भाई आ समाजक लोक ने ! त' फेर कियाक हम कोनो नेता आ असामाजिक व्यक्ति कें बहकाव में आबि अपन ' वर्तमान आ भविष्य ' दूनू ख़राब क' लैत छी ?









अकबर:: हाँ भाई ! यावत लोकक बिच सामंजस नै होएत , तावत व्यक्ति आ समाज कें पूर्ण विकास संभव नै अछि !! (लम्बा सांस लैत )...ओना हम जाहि काज सँ आएल छलौं गप करबा में बीसैरे गेलौं ! ..भाई , काहिल ''ईद'' थिक , अपने सपरिवार सादर आमंत्रित छी ...जरुर आएब ।











विष्णुदेव:: अवश्ये! अवश्ये!!



अकबर:: (कल जोइर )...तखन आब आज्ञा दियअ ...।



प्रस्थान (पर्दा खसैत अछि )



दृश्य: तेसर (समाप्ति)

दृश्य: चारिम




समय: दिन









(खेत में नारायण खेत तमैत)



(अकबर कें प्रवेश)









अकबर: प्रणाम, नारायण भाई!









नारायण: खूब निकें रहू !









अकबर: बुझि परैया खेतक खूब सेवा करैत छी !









नारायण: की सेवा करबै ? माएक दूधक कर्ज कियो चुका सकैत अछि ? तहन जतेक पार लगैया करैत छी !









अकबर: ...ठीक कहलौं ! माए आ खेत में कनेकों भेद नै । लोक माएक दूध पीब आ खेतक अन्न खाए पैघ होइत अछि , मुदा, देखबा में अबैत अछि जेँ मनुष्य पैघ भेला' बाद माए आ खेत दुनु कें बिसैर भदेस में जा ' बैस जाइत अछि ।









नारायण: हम की कही ? ...कहबा लेल हमरा माए कें पांचटा बेटा , मुदा, केकरो सँ कोनो सुख नै ! चारिटा भदेस रहैत अछि आ हम एकटा गाम पर रहैत छी , जतेक पार लगैत अछि सेवा करबाक प्रयत्न करैत छी ! ओकरा चारू कें त' पांच-छ: वर्ष गाम एलाह भ' गेलहि ....









अकबर:..पांच-छ: वर्ष !! धन्य छथि महाप्रभु सभ ! की हुनका लोकन कें अपन जननी -जन्मभूमि कें याद नै अबैत छन्हि ??









नारायण:.. फोन केने छलाह --छुट्टी नै भेटहिया ! माए हेतु खर्चा हम सभ भाई मिल क' भेज देब ।









अकबर: तौबा!तौबा!! ई पापी पेट जे नै कराबाए ! एक बिताक उदर भड़बाक हेतु जननी-जन्मभूमिक परित्याग ! -भाई , की मिथिलांचल एतेक निर्धन थिक? की माएक छातीक ढूध सुइख गेलहि --जे एकर धिया-पुता कें दोसरक छातीक दूध पीबअ लेल विवश होबअ पइड़ रहल छै ?









नारायण: नै भाई, नै ! हम एहि गप के नै मानैत छी , जे माए मैथिलिक छातीक दूध सुखा गेलाए ! ओकर दूध त' बहि क' क्षति भ' रहल छै ! कारण, धिया -पुता सभ 'सभ्य आ संस्कारी ' दूध पिबहे नै चाहैत अछि ! ओकरा त' भदेसी डिब्बा बंद दूध पिबाक हीस्सक लागि गेल छै ।









अकबर: ठीक कहलौं ! धान कटेबाक अछि , एकटा ज'न नै भेट रहल अछि । सब दोसर जगह जा' गाहिर -बात सुनि गधहा जेना खटैत अछि, मुदा, अपन गाम आ अपन खेत में काज करबा' में लाज होइत छै ! भदेस में रिक्शा-ठेला सब चलाएत , मुदा, अपना गाम में मजदूरी नै करत ! आ भदेस में अनेरो अपन जननी-जन्मभूमि के अपनों आ दोसरो सँ गरियायत..









नारायण: अरे, हम त' कहैत छि--किछु दिन जँ जी-जान सँ एहि धरती पर मेहनत काएल जाए त' ई धरती फेर हँसत-लहलहाएत । कोनो धिया-पुता कें माएक ममताक आँचर सँ दूर नै रहए पड़तै ।









अकबर: मुदा, ई होएत कोना ? कोना सुतल आत्मा कें जगाओल जाए?









नारायण:एहि हेतु सभ सँ पहिने हमरा लोकन कें जाइत-पाइत सँ ऊपर उठि एक होबअ पड़त ! हमरा सभ कें बुझअ पड़त जे हम सभ मिथिलावाशी छी अओर हमर मात्र एक भाषा थिक 'मैथिली' , हमर मात्र एक उद्देश्य थिक सम्पूर्ण मिथिलाक विकाश ।









अकबर: (खेत सँ माइट उठबैत ) हाँ भाई, हाँ ! हम सभ एक छी --"मिथिलावाशी" । एहि माइट में ओ सुगंध अछि जकर महक अपना धिया-पुता कें जरुर खिंच लाएत ।(कविता पाठ)



"हम छी मैथिल मिथिलावाशी, मैथिली मधुरभाषी ।



मातृभूमि अछि मिथिला हमर, हम मिथिला केर संतान ।



सीता सन बहिन हमर , पिता जनक समान ।



नै कोनो अछि भेद-भाव , नै जाइत-पाइत कें अछि निशान ।



आउ एक स्वर में एक संग , हम मिथिला कें करी गुण-गान ---जय मिथिला , जय मैथिली ।



पर्दा खसैत अछि



चारिम दृश्यक समाप्ति

दृश्य:पाँचम




समय:दुपहरिया



(लाल काकी आँगन में धान फटकैत )









(विष्णुदेवक प्रवेश )









विष्णुदेव: गोड़ लागे छी लाल काकी !









लाल काकी: के..? विष्णुदेव ! आऊ, खूब निकें रहू ।









विष्णुदेव: लाल काकी ! बुझि परैया--एहि बेर धान खूब उपजलाए ?









लाल काकी : हाँ , सब भगवतिक कृपा ! जँ एहि तरहे अन्न-पानि उपजाए , त' मिथिलावाशी कें अपन गाम-घर छोइड़ भदेस नै जाए पड़तैं ।









(प्लेट में एक गिलास आ एक कप चाय ल' गीताक प्रवेश , गीता दुनु गोटे के चाय द' दुनु गोटे के पाएर छू प्रणाम करैत )









विष्णुदेव: खूब निकें रहू ! पढू-लिखू यसस्वी बनूँ ! अपन गीता नाम के चरितार्थ करू ।









गीता: से कोना होएत कका ?









विष्णुदेव:...किएक ? अहाँ स्कूल नै जाइत छी की ?









गीता:...नै !



लाल काकी: (बीचे में )...आब स्कूल जा' क' की करतै ! बेटी के बेसी पढ़ेनाहि ठीक नै , चिट्ठी-पुर्जी लिखनाई-पढ़नाई आबि गेलहि , बड्ड भेलहि ..









विष्णुदेव:...काकी !! पढाई त' सब लेल अनिवार्य थिक, चाहे ओ बेटी होइथ वा बेटा । आओर , खास क' बेटी कें त' बेसी पढबाक चाही , कारण, बेटीए त' माए बनैया । माए परिवारक ध्रुव केंद्र होइत छथि । हुनक संस्कार आ शिक्षाक प्रभाव सीधा -सीधा धिया-पुता आ समाज पर परैत अछि ।









लाल काकी:..सें त' बुझलौं ! मुदा, बेसी पढि-लिख लेला सँ विआहक समस्या उत्पन्न भ' जाइत अछि ! बेसी पढ़त त' बेसी पढ़ल जमाए चाही । बेसी पढ़ल जमाए ताकू त' बेसी दहेज़ --कहाँ सँ पा'र लागत ?...एक त' पढ़ाइक खर्च , ऊपर सँ दहेजक बोझ , बेटी वाला त' धइस जाइत अछि ।









गीता :....कका ! की बेटी एतेक अभागिन होइत अछि ? ... जकर जन्म लइते माए- बाप दिन-राइत चिंतित रहे लगैत छथि ! बेटीक जन्मइते माए-बाप "वर" ताकअ लगैत छथि ! आओर ओकर हिस्साक कॉपी-किताबक टका विआह हेतु जमा होबअ लगैत अछि !....कका ! की मात्र दहेजक डर सँ बेटी कें अपन अधिकार सँ वंचित काएल जाइत अछि वा पुरुष प्रधान समाज कें ई डर होइत छन्हि ----जँ नारी बेसी ज्ञानी भ' जेती त' हुनका सँ आगू नै भ' जाए ......???









विष्णुदेव:..नै बेटी , नै ! बेटी अभागिन नै सौभागिन होइत छथि ! बेटी त' दुर्गा , सरस्वती आ लक्ष्मी रूप छथि ! नारी त' पत्नी रूप में दुर्गा अर्थात "शक्तिदात्री ", माए रूप में सरस्वती अर्थात "ज्ञानदात्री" आ बेटी रूप में लक्ष्मी अर्थात सुखदात्री छथि । हमर शास्त्र में त' नारी कें उच्च स्थान देल गेल अछि , जेना ----



"यत्र नारी पूज्यन्ते , तत्र लक्ष्मी रमन्ते "



" या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण सवंस्थिता ।



नमस्तस्यै , नमस्तस्यै , नमस्तस्यै नमो: नम: ।।"---आदि -आदि ...



ई जें समाज में उहा-पोह आ दहेजक प्रकोप देख रहल छी , एकर एकटा मात्र कारण थिक --'मिथ्या प्रदर्शन ' ! एक-दोसर कें नीच देखेबाक होड़ आओर बेसी-स-बेसी दोसरक सम्पति हड़पबाक लोभ ।









गीता: कका ! त' की हम पढि-लिख नै सकैत छी ? की डॉक्टर बनि समाजक सेवा करबाक हमर सपना पूर्ण नै भ' सकैत अछि ? की हमर आकांक्षा के दहेजक बलि चढअ परतै ?









विष्णुदेव: (गीता सँ )...बेटी , अहाँ जुनि निराश हौ ! अहाँ पढ़ब आ जरुर पढ़ब ! हम सब मिल अहाँ कें जरुर डॉक्टर बनाएब । होनहार पूत केकरो एक कें नै बल्कि समाजक पूत होइत अछि । (लाल काकी सँ )... लाल काकी , ई त' कोनो जरुरी नै जे जँ बेटी डॉक्टर छथि त' "वर" डॉक्टर आ इंजिनियर हौक ! जँ बेटी स्वंम आत्मनिर्भर छथि त' कोनो नीक संस्कारी आ पढ़ल-लिखल लड़का सँ विआह करबा सकैत छी । अपन सबहक नजरिया के बदले परत, तहने ई समाज आगू बढ़ी सकैत अछि । ... काहिल सँ गीता कें स्कूल जाए दिऔ । पढि-लिख क' अहाँक संग सम्पूर्ण समाज कें नाम रौशन करत । अच्छा आब हम चलैत छी ।(प्रस्थान)



दृश्य:पांचमक समाप्ति