नाटक: "जागु"
दृश्य:दोसर ,
(सोइरिक दृश्य )
(नारायणक प्रवेश )
नारायण:: (लक्ष्मी सँ )...नीके छी ने ? (बच्चा कें कोरा मे उठा लैत छथि )....लक्ष्मी , ई त' बिल्कुल अहींक दोसर रूप बुझि पड़ैत अछि !
लक्ष्मी:: गीता के बाबू , हम बड्ड अभागिन छी ! हम अहाँ कें बेटा नै द' सकलौं ! माए ठीके कहै छली , अहाँ दोसर विआह क' लियह....
नारायण:: (बीचे मे )....लक्ष्मी !!...ई अहाँ की कहैत छी ? दोसर विआह ! ओ हम!! कदापि नै !!! हमरा बेटा नै भेल त' एहि मे अहाँक कोन दोष ? जँ हमरा भाग्य मे बेटा नै होएत त' चारियोटा विआह केने कोनो लाभ नै ...
लक्ष्मी::..मुदा, अहाँक वंश...
नारायण:: ....की बेटी बापक अंश नै होइत अछि ? बेटीए सँ वंश चलत | देखिलियौ, नेहरूजी कें वंश इंदिरा गाँधी सँ चलि रहल छन्हि |
लक्ष्मी::..हम अहाँक भावना कें बुझैत छी , मुदा, ई समाज नै बुझत ! हमरा सब दिन निपुत्री होएबाक उलाहना सुनै पड़त |
नारायण:: त' की समाजक डर सँ हम अपन जिनगी नरक बना लीअ? की हम दोसर विआह करू ? वा बेटा के इंतजार मे एक सोरहि धिया-पुता जन्माऊ ?...लक्ष्मी , समाज एहिना कहैत रहत ...भुगतअ त' अपना सभ कें पड़त | हम कहैत छी ---आब ऑपरेशन करा' लीअ | आजुक युग मे एक -स -दू धिया -पुता बड्ड भेलहि, चाहे बेटा हुए वा बेटी ...
लक्ष्मी::..हम कहिया मना केलहूँवाँ ! हम त' दोसरे बेटी के बाद ऑपरेशन कराबअ लेल माइर केने रही, मुदा, माए जिद्द करए लगली...
नारायण::...नै, आब किनको जिद्द नै नै चलतैन ! अहाँ सोइरी सँ निकलू , तखन ऑपरेशन भ' जाएत |
(नारायण...नारायण ...नेपथ्य सँ नारायण के केओ सो पाडैत)...याह एलौ ...
नारायणक प्रस्थान ....(पर्दा खसैत अछि )
दोसर दृश्यक: समाप्ति
दृश्य:दोसर ,
(सोइरिक दृश्य )
(नारायणक प्रवेश )
नारायण:: (लक्ष्मी सँ )...नीके छी ने ? (बच्चा कें कोरा मे उठा लैत छथि )....लक्ष्मी , ई त' बिल्कुल अहींक दोसर रूप बुझि पड़ैत अछि !
लक्ष्मी:: गीता के बाबू , हम बड्ड अभागिन छी ! हम अहाँ कें बेटा नै द' सकलौं ! माए ठीके कहै छली , अहाँ दोसर विआह क' लियह....
नारायण:: (बीचे मे )....लक्ष्मी !!...ई अहाँ की कहैत छी ? दोसर विआह ! ओ हम!! कदापि नै !!! हमरा बेटा नै भेल त' एहि मे अहाँक कोन दोष ? जँ हमरा भाग्य मे बेटा नै होएत त' चारियोटा विआह केने कोनो लाभ नै ...
लक्ष्मी::..मुदा, अहाँक वंश...
नारायण:: ....की बेटी बापक अंश नै होइत अछि ? बेटीए सँ वंश चलत | देखिलियौ, नेहरूजी कें वंश इंदिरा गाँधी सँ चलि रहल छन्हि |
लक्ष्मी::..हम अहाँक भावना कें बुझैत छी , मुदा, ई समाज नै बुझत ! हमरा सब दिन निपुत्री होएबाक उलाहना सुनै पड़त |
नारायण:: त' की समाजक डर सँ हम अपन जिनगी नरक बना लीअ? की हम दोसर विआह करू ? वा बेटा के इंतजार मे एक सोरहि धिया-पुता जन्माऊ ?...लक्ष्मी , समाज एहिना कहैत रहत ...भुगतअ त' अपना सभ कें पड़त | हम कहैत छी ---आब ऑपरेशन करा' लीअ | आजुक युग मे एक -स -दू धिया -पुता बड्ड भेलहि, चाहे बेटा हुए वा बेटी ...
लक्ष्मी::..हम कहिया मना केलहूँवाँ ! हम त' दोसरे बेटी के बाद ऑपरेशन कराबअ लेल माइर केने रही, मुदा, माए जिद्द करए लगली...
नारायण::...नै, आब किनको जिद्द नै नै चलतैन ! अहाँ सोइरी सँ निकलू , तखन ऑपरेशन भ' जाएत |
(नारायण...नारायण ...नेपथ्य सँ नारायण के केओ सो पाडैत)...याह एलौ ...
नारायणक प्रस्थान ....(पर्दा खसैत अछि )
दोसर दृश्यक: समाप्ति