मंगलवार, 4 अगस्त 2015

दोसरक देखाउंस "


दोसरक जँका बने चललौं
भंगइठ (बिगैर )  गेल जिनगीक सुर-ताल,
निके छलौं अपने जँका
सुखमय छल संसार।


चाल अपन जँ छोड़ब
जँ पकड़ब दोसरक राह ,
 मंजील त नहिये भेटत
भ जाएत जिनगी तबाह।

प्रकृति मौलिक थिक
प्रकृतिक सभ वस्तुक  मौलिकता ,
तहिना मन्नुखक जिनगी सेहो
सभके अपन विशिष्ठ्ता।


    :गणेश कुमार झा "बावरा "
     गुवाहाटी