बन्न परल छै
सुन्न महल छै
कानि रहल छै आंगन ।
पूछि रहल छै
ढूरि रहल छै
बाट जोहैत छै दलान ।
भदेश धेने छै
गाम बिसरल छै
परती बनल छै खेत-खरिहान ।
भाषा छुटल छै
संस्कृति घटल छै
मिट रहल छै अपन पहिचान ।
:गणेश मैथिल
गुवाहाटी