रविवार, 26 फ़रवरी 2012

Kavita--GARIB

"गरीब"


विचित्र विधान अहि संसार कें--

जे पसीना बहा उपजाबैथ रोटी

हुनके तन नै दुई हाथक धोती !

जिनक पसीनाक कमाए सँ

सेठ-साहूकार भरैथ अपन कोठी

हुनके भेटैत छनि दरिद्र आ गरीबक उपाधि !

जिनक मेहनत सँ भड़ल अछि राजाक बखाड़ी

वाएह समाज मे बनल छैथ भिखाड़ी !

जिनक रक्त सँ इजोत अछि नगर

हुनके घर नै जारि दिया- बाती !

नित्य सत्ताक उलट-फेर होइत अछि--

हुनके नाम पर

नित्य राजाक आदेश होइत अछि--

हुनके लेल

मुदा नै जानि --

कोन जिन घुसल अछि ?

जे सब हजम क' जाइत अछि रस्ते मे !

अनेकों रियायत अनेकों कोष

वोटक दिन मे अनेरोक जोश

चुनावक बाद सब बेहोश

ज धोखो सँ किछु हुया

त बाबू-भैया करैथ भोग !!

:गणेश कुमार झा "बावरा"

गुवाहाटी