तुम्हारी इस बेरुखी से अच्छा,
तो तुम्हारी जुदाई के गम थे,
जो कम से कम धड़कन बन,
सिने मे धड़कते तो थे।
थोरी देर के लिए ही सही,
लेकिन याद कर तुम्हेँ,
यादोँ की गहरी सागर मेँ,
यादोँ के सहारे--
तुम्हारे दिदार तो किया करते थे।
जब से आयी हो तुम,
न जाने क्यूं- -
नजरेँ मिलाने के वजाए,
नजरेँ चुराने लगी हो तुम?
कोई मिल गया है और,
या मुझे समझने लगी हो गैर?