सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

Garibak Aah

कहिया धरि रहतै जिनगी अन्हार
कहिया सूरजदेव करथिन इजोत
नेतबा बेटबा नित्य हमरे लेल
करैत रहैत छै नव नव जुगार
मुदा हाए रे अभागल जिनगी हमर...
हमर गरीबी मजबूरी लाचारी पर
नित्य होइत अछि राजनीति
सत्ता हरपे खातिर सभ खाइथ
हमरे गरीबीक शपथ
मुदा हाए रे अभागल जिनगी हमर....
अपने पूँजीवाद के चमक मे धसल
धन सम्पति के बाढ़ि मे डूबल
हमर गरीबी समाजवाद मे फँसल
ताँए पेट आ आँखि दूनु सूखल
हाए रे अभागल जिनगी हमर .

     :गणेश कुमार झा "बावरा "
       गुवाहाटी