कहिया धरि रहतै जिनगी अन्हार
कहिया सूरजदेव करथिन इजोत
नेतबा बेटबा नित्य हमरे लेल
करैत रहैत छै नव नव जुगार
मुदा हाए रे अभागल जिनगी हमर...
हमर गरीबी मजबूरी लाचारी पर
नित्य होइत अछि राजनीति
सत्ता हरपे खातिर सभ खाइथ
हमरे गरीबीक शपथ
मुदा हाए रे अभागल जिनगी हमर....
अपने पूँजीवाद के चमक मे धसल
धन सम्पति के बाढ़ि मे डूबल
हमर गरीबी समाजवाद मे फँसल
ताँए पेट आ आँखि दूनु सूखल
हाए रे अभागल जिनगी हमर .
:गणेश कुमार झा "बावरा "
गुवाहाटी
कहिया सूरजदेव करथिन इजोत
नेतबा बेटबा नित्य हमरे लेल
करैत रहैत छै नव नव जुगार
मुदा हाए रे अभागल जिनगी हमर...
हमर गरीबी मजबूरी लाचारी पर
नित्य होइत अछि राजनीति
सत्ता हरपे खातिर सभ खाइथ
हमरे गरीबीक शपथ
मुदा हाए रे अभागल जिनगी हमर....
अपने पूँजीवाद के चमक मे धसल
धन सम्पति के बाढ़ि मे डूबल
हमर गरीबी समाजवाद मे फँसल
ताँए पेट आ आँखि दूनु सूखल
हाए रे अभागल जिनगी हमर .
:गणेश कुमार झा "बावरा "
गुवाहाटी