गुरुवार, 31 मार्च 2016

छंदक फांद तोड़ि ताड़ि
लीख रहल छी कविता आइ ।
नहि जानै छी रचब हम
दोहा, सोरठा आर चौपाई ।।
मनक भाव उकेर रहल छी
बिनु शब्दक मात्रा गनने आइ ।
कहथि कविता कवि सँ--
हम बनी जन-जनक कंठक बाणी
करु एहन कोनो उपाई ।।