रविवार, 15 नवंबर 2015

निर्मोही पिया"

"निर्मोही पिया"
सखी हेऽ
हमरा नहि आई तूं रोकिहऽ
जँ पिया नहि आई एता
त हम खाऽ लेब माहुर !
पिया बड्ड निर्मोही निर्दयी भेलाऽ
हमरा प्रेमक पाठ  पढा कऽ
अपने ओरीया देश चलि गेलाऽ
ओ ओरीया देश जा कऽ
कोनो सौतनीक फेराऽ मे पड़ि
हमरा निछौह बिसैर गेलाऽ
हमरा एतऽ बिरहाक आगिमे
जरै लेल छोड़ि गेलाऽ !
सखी हेऽ
की कहिअऽ व्यथा अपन
किछु नहि सुझैया
किछु नहि फुराइया
किछु नहि निक लगैया !
सखी हेऽ
फागुनक बसात मन जरबैया
सावनक बरशात देह जरबैया
पुशक जाऽर थड़-थड़ कपबैया
अहुरीया काटि हम राति बितबै छी
बिरहनि बनि हम दिन बितबै छी
सदिखन हुनके हम बाट जोहैत छी
हुनक योगीन बनि हम
नित्य नब आश बुनै छी !
सखी हेऽ
तूंही कहऽ
कतेक दिन हम धिरज राखू ?
कतेक दिन हम बिरहाक आगिमे
भुस्सा जेना नहुँ नहुँ जरू ??
:©गणेश मैथिल
14/10/2003