शनिवार, 7 नवंबर 2015

kavita...mithilesh

शांत ! शांत !! शांत !!!
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
आहाँक तमशाएब अछि उचित
मुदा, राखू कनेक धैर्य
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
शांत ! शांत !! शांत !!!
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
आहाँ सन-सन चारि कोटि
माए मिथिलाके मिथिलेश
मुदा, सभ छथि सुतल
कुम्भकर्णक घोर निन्नमे
ढोल नगारा बजा जगाबे पड़त
मुइल ह्रदयके झकझोरे पड़त
करे पड़त जतन विशेष
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
शांत ! शांत !! शांत !!!
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
बैर बैमन्स्य टाँग खींचब
बड़का-बड़का गप हाँकब
काज पड़ला पर मुँह फेड़ब
रहिगेल मैथिलक गुण अवशेष
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
शांत ! शांत !! शांत !!!
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
झुंडक झुंड छोड़ि मिथिला
जाइथ मैथिलपुत भदेश
संगहि ओतहि छोड़ि आबैथ
अपन संस्कृति-भाषा-भेष
देख ई दुर्दिन दशा
माए मिथिलाके  होइन कलेश
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
शांत ! शांत !! शांत !!!
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
माए मिथिला करैथ आह्वान
हे चारि कोटि मैथिलपुत मिथिलेश
क्रान्तिक मशाल अहीं लेसू
बनि क्रान्ति दूत
हे चारि कोटि मैथिलपुत मिथिलेश !!!
:©गणेश मैथिल