सोमवार, 7 अप्रैल 2014

kavita--उताइर् फेंकू

       " उताइर् फेंकू "


तोइड़  दिअ  जाइत-पाइत केँ बन्हन केँ
उठू ठार होउ बढू आगाँ हे मैथिल संतान
थाइम लिअ हाथ बेबश-निर्धन केँ !!


छोइड़ दिअ तुच्छ स्वार्थ भावना केँ
बुझि -सुझि करू  ओ  काज हे मैथिल संतान
जाहि सँ लाभ हुआ समस्त समाज केँ !!


बिसैर जाउ भेद अपन आन केँ
जाइन लिअ पहचाइन लिअ हे मैथिल संतान
हम सभ छी संतान एकहि माए केँ !!


उताइर् फेंकू चद्दैर मिथ्या अहम् केँ
होबए दियौ सभके विकाश हे मैथिल संतान
तखने होएत कल्याण मैथिल-मैथिली-मिथिलाधाम केँ !!
      :गणेश कुमार झा "बावरा"
       गुवाहाटी