बुधवार, 7 दिसंबर 2016

मैथिलि - हनुमान चालिसा ,हनुमान जयंती के मंगल शुभकामना


  ||  मैथिलि - हनुमान चालिसा  ||
     लेखक - रेवती रमण  झा " रमण "
     ||  दोहा ||
गौरी   नन्द   गणेश  जी , वक्र  तुण्ड  महाकाय  ।
विघन हरण  मंगल कारन , सदिखन रहू  सहाय ॥
बंदउ शत - शात  गुरु चरन , सरसिज सुयश पराग ।
राम लखन  श्री  जानकी , दीय भक्ति  अनुराग । ।
 ||    चौपाइ  ||
जय   हनुमंत    दीन    हितकारी ।
यश  वर  देथि   नाथ  धनु धारी ॥
श्री  करुणा  निधान  मन  बसिया ।
बजरंगी   रामहि    धुन   रसिया ॥
जय कपिराज  सकल गुण सागर ।
रंग सिन्दुरिया  सब गुन  आगर  ॥
गरिमा   गुणक  विभीषण जानल ।
बहुत  रास  गुण  ज्ञान  बखानल  ॥
लीला  कियो  जानि  नयि पौलक ।
की कवि कोविद जत  गुण गौलक ॥
नारद - शारद  मुनि  सनकादिक  ।
चहुँ  दिगपाल  जमहूँ  ब्रह्मादिक ॥
लाल   ध्वजा   तन  लाल लंगोटा  ।
लाल   देह   भुज   लालहि   सोंटा ॥
कांधे     जनेऊ      रूप     विशाल  ।
कुण्डल    कान    केस   धुँधराल  ॥
एकानन    कपि     स्वर्ण   सुमेरु  ।
यौ    पञ्चानन    दुरमति   फेरु  ।।
सप्तानन    गुण  शीलहि निधान ।
विद्या   वारिध  वर ज्ञान सुजान ॥
अंजनि   सूत  सुनू   पवन कुमार  ।
केशरी    कंत     रूद्र      अवतार   ॥
अतुल भुजा  बल  ज्ञान अतुल अइ ।
आलसक जीवन नञि एक पल अइ ॥
दुइ    हजार   योजन   पर  दिनकर ।
दुर्गम  दुसह   बाट  अछि जिनकर ॥
निगलि गेलहुँ रवि मधु फल जानि  ।
बाल   चरित  के  लीखत   बखानि  ॥
चहुँ   दिस    त्रिभुवन  भेल  अन्हार ।
जल , थल ,  नभचर  सबहि बेकार ॥
दैवे    निहोरा   सँ    रवि   त्यागल  । 
पल  में  पलटि  अन्हरिया भागल  ॥ 
अक्षय  कुमार  के  मारि   गिरेलहुं  ।
लंका   में    हरकंप     मचयलहूँ  ॥
बालिए  अनुज   अनुग्रह   केलहु  ।
ब्राहमण   रुपे    राम मिलयलहुँ  ॥
युग    चारि    परताप    उजागर  ।
शंकर   स्वयंम   दया  के  सागर ॥
सूक्षम बिकट आ भीम रूप धारि ।
नैहि  अगुतेलोहूँ राम काज करि  ॥
मूर्छित लखन  बूटी जा  लयलहुँ  ।
उर्मिला    पति     प्राण  बचेलहुँ  ॥
कहलनि   राम  उरिंग  नञि तोर ।
तू  तउ  भाई  भरत  सन  मोर   ॥
अतबे  कहि  द्रग   बिन्दू  बहाय  ।
करुणा निधि , करुणा चित लाय ॥
जय   जय   जय बजरंग  अड़ंगी  ।
अडिंग ,अभेद , अजीत , अखंडी ॥
कपि के सिर पर धनुधर  हाथहि ।
राम  रसायन  सदिखन  साथहि ॥
आठो  सिद्धि  नो  निधि वर दान ।
सीय  मुदित  चित  देल हनुमान ॥
संकट    कोन  ने   टरै   अहाँ   सँ ।
के   बलवीर   ने   डरै   अहाँ  सँ  ॥
अधम   उदोहरन , सजनक संग ।
निर्मल - सुरसरि  जीवन तरंग ॥
दारुण - दुख  दारिद्र् भय मोचन ।
बाटे जोहि  थकित दुहू  लोचन ॥
यंत्र - मंत्र   सब तन्त्र  अहीं छी ।
परमा नंद  स्वतन्त्र  अहीं  छी  ॥
रामक  काजे   सदिखन  आतुर ।
सीता  जोहि  गेलहुँ   लंकापुर  ॥
विटप अशोक  शोक  बिच जाय ।
सिय  दुख  सुनल कान लगाय ॥
वो छथि  जतय ,  अतय  बैदेही ।
जानू  कपीस   प्राण  बिन देही  ॥
सीता ब्यथा  कथा   सुनि  कान ।
मूर्छित  अहूँ   भेलहुँ  हनुमान ॥
अरे    दशानन    एलो     काल  ।
कहि  बजरंगी   ठोकलहुँ  ताल ॥
छल दशानन  मति  के आन्हर ।
बुझलक  तुच्छ अहाँ  के  वानर ॥
उछलि कूदी कपि  लंका जारल ।
रावणक  सब  मनोबल  मारल  ॥
हा - हा   कार  मचल  लंका  में  ।
एकहि  टा  घर  बचल लंका में  ॥
कतेक  कहू  कपि की -  की कैल ।
रामजीक  काज  सब   सलटैल  ॥
कुमति के काल सुमति सुख सागर ।
रमण ' भक्ति चित करू  उजागर ॥
  ||  दोहा ||
चंचल कपि कृपा करू , मिलि सिया  अवध नरेश  ।
अनुदिन   अपनों    अनुग्रह , देबइ  तिरहुत देश ॥
सप्त   कोटि   महामन्त्रे ,  अभि मंत्रित  वरदान ।
बिपतिक   परल   पहाड़  इ , सिघ्र  हरु  हनुमान ॥

|| 2  ||
          ॥  दुख - मोचन  हनुमान   ॥ 
  जगत     जनैया  ,  यो बजरंगी  ।
  अहाँ      छी  दुख  बिपति  के संगी
  मान  चित  अपमान त्यागि  कउ ,
     सदिखन  कयलहुँ   रामक काज   । 
   संत   सुग्रीव   विभीषण   जी के,   
   अहाँ , बुद्धिक बल सँ  देलों  राज  ॥ 
   नीति  निपुन   कपि कैल  मंत्रना  
   यौ      सुग्रीव   अहाँ    कउ  संगी  
              जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख --

  वन  अशोक,  शोकहि   बिच सीता  
  बुझि   ब्यथा ,  मूर्छित  मन भेल  ।
  विह्बल   चित  विश्वास  जगा  कउ
  जानकी     राम     मुद्रिका    देल  ॥
  लागल  भूख  मधु र फल खयलो  हूँ
  लंका     जरलों    यौ   बजरंगी   ॥
               जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख--

   वर  अहिरावण  राम लखन  कउ
   बलि   प्रदान लउ   गेल  पताल  ।
   बंदि   प्रभू    अविलम्ब  छुरा कउ
   बजरंगी    कउ   देलौ कमाल  ॥
   बज्र   गदा   भुज  बज्र जाहि  तन 
     कत   योद्धा  मरि   गेल   फिरंगी  , 
             जगत  जनैया ---अहाँ  छी दुख -

 वर शक्ति वाण  उर जखन लखन , 
 लगि  मूर्छित  धरा  परल निष्प्राण । 
 वैध     सुषेन   बूटी   जा   आनल  ,
 पल में  पलटि  बचयलहऊ प्राण  ॥ 
 संकट      मोचन   दयाक  सागर , 
 नाम      अनेक ,   रूप बहुरंगी  ॥ 
       जगत      जनैया --- अहाँ  छी दुख --

नाग  फास   में   बाँधी  दशानन  , 
राम     सहित   योद्धा   दालकउ । 
गरुड़  राज कउ   आनी  पवन सुत  ,
कइल     चूर     रावण    बल  कउ 
जपय     प्रभाते    नाम अहाँ   के ,
तकरा  जीवन  में  नञि  तंगी   ॥ 
         जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख --

ज्ञानक सागर ,  गुण  के  आगर  ,
  शंकर   स्वयम  काल  के  काल  । 
जे जे अहाँ   सँ  बल  बति यौलक ,
ताही     पठैलहूँ   कालक   गाल   
अहाँक  नाम सँ  थर - थर  कॉपय ,
भूत - पिशाच   प्रेत    सरभंगी   ॥ 
     जगत   जनैया --- अहाँ  छी दुख -- 

लातक   भूत   बात  नञि  मानल ,
  पर तिरिया लउ  कउ  गेलै  परान । 
  कानै  लय  कुल  नञि  रहि  गेलै  , 
अहाँक   कृपा सँ , यौ  हनुमान  ॥ 
अहाँक   भोजन  आसन - वासन ,
राम  नाम  चित बजय  सरंगी  ॥ 
   जगत   जनैया --- अहाँ  छी दुख -

सील    अगार  अमर   अविकारी  ,
हे   जितेन्द्र   कपि   दया  निधान  । 
"रामण " ह्र्दय  विश्वास  आश वर ,
अहिंक एकहि  बल अछि हनुमान  ॥ 
एहि   संकट   में  आबि   एकादस ,
यौ   हमरो   रक्षा   करू   अड़ंगी  ॥ 
      जगत  जनैया --- अहाँ  छी दुख ----
|| 3 ||
हनुमान चौपाई - द्वादस नाम  
 ॥ छंद  ॥ 
जय  कपि कल  कष्ट  गरुड़हि   ब्याल- जाल 
केसरीक  नन्दन  दुःख भंजन  त्रिकाल के  । 
पवन  पूत  दूत    राम , सूत शम्भू  हनुमान  
बज्र देह दुष्ट   दलन ,खल  वन  कृषानु के  ॥ 
कृपा  सिन्धु   गुणागार , कपि एही करू  पार 
दीन हीन  हम  मलीन,सुधि लीय आविकय । 
"रमण "दास चरण आश ,एकहि चित बिश्वास 
अक्षय  के काल थाकि  गेलौ  दुःख गाबि कय ॥ 
चौपाई 
जाऊ जाहि बिधि जानकी लाउ ।  रघुवर   भक्त  कार्य   सलटाउ  ॥ 
यतनहि  धरु  रघुवंशक  लाज  । नञि एही सनक कोनो भल काज ॥ 
श्री   रघुनाथहि   जानकी  ज्ञान ।   मूर्छित  लखन  आई हनुमान  ॥ 
बज्र  देह   दानव  दुख   भंजन  ।  महा   काल   केसरिक    नंदन  ॥ 
जनम  सुकरथ  अंजनी  लाल ।  राम  दूत  कय   देलहुँ   कमाल  ॥ 
रंजित  गात  सिंदूर    सुहावन  ।  कुंचित केस कुन्डल मन भावन ॥ 
गगन  विहारी  मारुति  नंदन  । शत -शत कोटि हमर अभिनंदन ॥ 
बाली   दसानन दुहुँ  चलि गेल । जकर   अहाँ  विजयी  वैह   भेल  ॥ 
लीला अहाँ के अछि अपरम्पार ।  अंजनी    लाल    कर    उद्धार   ॥ 
जय लंका विध्वंश  काल मणि । छमु अपराध सकल दुर्गुन  गनि ॥ 
  यमुन  चपल  चित  चारु तरंगे । जय  हनुमंत  सुमित  सुख गंगे ॥  
हे हनुमान सकल गुण  सागर  ।  उगलि  सूर्य जग कैल उजागर ॥ 
अंजनि  पुत्र  पताल  पुर  गेलौं  । राम   लखन  के  प्राण  बचेलों  ॥ 
पवन   पुत्र  अहाँ  जा के लंका । अपन  नाम  के  पिटलों  डंका   ॥ 
यौ महाबली बल कउ जानल ।  अक्षय कुमारक प्राण निकालल ॥ 
हे  रामेष्ट  काज वर कयलों ।   राम  लखन  सिय  उर  में लेलौ  ॥ 
फाल्गुन साख ज्ञान गुण सार ।   रुद्र   एकादश   कउ  अवतार  ॥ 
हे पिंगाक्ष सुमित सुख मोदक ।  तंत्र - मन्त्र  विज्ञान के शोधक ॥ 
अमित विक्रम छवि सुरसा जानि । बिकट लंकिनी लेल पहचानि ॥ 
उदधि क्रमण गुण शील निधान ।अहाँ सनक नञि कियो वुद्धिमान॥ 
सीता  शोक   विनाशक  गेलहुँ । चिन्ह  मुद्रिका  दुहुँ   दिश  देलहुँ ॥ 
लक्षमण  प्राण  पलटि  देनहार ।  कपि  संजीवनी  लउलों  पहार ॥ 
दश  ग्रीव दपर्हा  ए कपिराज  । रामक  आतुरे   कउलों   काज  ॥ 
॥ दोहा ॥  
प्रात काल  उठि जे  जपथि ,सदय धराथि  चित ध्यान । 
शंकट   क्लेश  विघ्न  सकल  , दूर  करथि   हनुमान  ॥ 
|| 4 ||
  ||  हनुमान  बन्दना  ||

जय -जय  बजरंगी , सुमतिक   संगी  -
                       सदा  अमंगल  हारी  । 
मुनि जन  हितकारी, सुत  त्रिपुरारी  -
                         एकानन  गिरधारी  ॥ 
नाथहि  पथ गामी  , त्रिभुवन स्वामी  
                      सुधि  लियौ सचराचर   । 
तिहुँ लोक उजागर , सब गुण  आगर -
                     बहु विद्या बल सागर  ॥ 
मारुती    नंदन ,  सब दुख    भंजन -
                        बिपति काल पधारु  । 
वर  गदा  सम्हारू ,  संकट    टारू -
                  कपि   किछु  नञि   बिचारू   ॥ 
कालहि गति भीषण , संत विभीषण -
                          बेकल जीवन तारल  । 
वर खल  दल मारल ,  वीर पछारल -
                       "रमण" क किय बिगारल  ॥ 
|| 5 ||
       ॥ हनुमान   वंदना ॥ 

शील  नेह  निधि , विद्या   वारिध
             कल  कुचक्र  कहाँ  छी  ।
मार्तण्ड   ताम रिपु  सूचि  सागर
           शत दल  स्वक्ष  अहाँ छी ॥
कुण्डल  कणक , सुशोभित काने
         वर कच  कुंचित अनमोल  ।
अरुण तिलक  भाल  मुख रंजित
            पाँड़डिए   अधर   कपोल ॥
अतुलित बल, अगणित  गुण  गरिमा
         नीति   विज्ञानक    सागर  ।
कनक   गदा   भुज   बज्र  विराज
           आभा   कोटि  प्रभाकर  ॥
लाल लंगोटा , ललित अछि कटी
          उन्नत   उर    अविकारी  ।
  वर    बिस    भुज    अहिरावण
         सब    पर भयलहुँ  भारी  ॥
दिन    मलीन   पतित  पुकारल
        अपन  जानि  दुख  हेरल  ।
"रमण " कथा ब्यथा  के बुझित हूँ
           यौ  कपि  किया अवडेरल
|| 6 ||
          ||  हनुमान - आरती  ||
आरती आइ अहाँक  उतारू , यो अंजनि सूत केसरी नंदन  । 
अहाँक  ह्र्दय  में सत् विराजथि ,  लखन सिया  रघुनंदन   
             कतबो  करब बखान अहाँ के '
            नञि सम्भव  गुनगान  अहाँके  । 
धर्मक ध्वजा  सतत  फहरेलौ , पापक केलों  निकंदन   ॥ 
आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
          गुणग्राम  कपि , हे बल कारी  '
          दुष्ट दलन  शुभ मंगल कारी   । 
लंका में जा आगि लागैलोहूँ , मरि  गेल बीर दसानन  ॥ 
आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
         सिया  जी के  नैहर  , राम जी के सासुर  '
         पावन     परम   ललाम   जनक पुर   । 
उगना - शम्भू  गुलाम जतय  के , शत -शत  अछि  अभिनंदन  ॥ 
आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
           नित     आँचर   सँ   बाट      बुहारी  '
          कखन   आयब   कपि , सगुण  उचारी  । 
"रमण " अहाँ के  चरण कमल सँ , धन्य  मिथिला के आँगन ॥ 
 आरती आइ ---  , यो  अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---




रचैता -
रेवती रमण झा " रमण "
ग्राम - पोस्ट - जोगियारा पतोर
आनन्दपुर , दरभंगा  ,मिथिला
मो 09997313751

सोमवार, 24 अक्टूबर 2016

गीत...

भोरे-भोरे कुचरलै दलान कौआ
आई आँगनमे एथीन पाहुन बौआ !!
निप-नाइप हम रखने छी आँगन-दुरखा
तरि रखने छी हम तिलकोर -तरुआ !!
भोरे-भोरे कुचरलै दलान कौआ
आई आँगनमे एथीन पाहुन बौआ !!
कहि देबैन हम हुनका सँ सब बतिया
काटि अहुरीया हम कोना बितेलौं रतिया !!
भोरे-भोरे कुचरलै दलान कौआ
आई आँगनमे एथीन पाहुन बौआ !!
पहिरेथीन हमरा ओ पाएरक पैजनीयाँ
जखन भेटबै हम हुनका सँ राति सखिया !!
भोरे-भोरे कुचरलै दलान कौआ
आई आँगनमे एथीन पाहुन बौआ !!
भींज जेबै हम हुनकर स्नेह रसमे रतिया
सीख लेबै हम हुनका सँ प्रेमक रीत सखिया !!
भोरे-भोरे कुचरलै दलान कौआ
आई आँगनमे एथीन पाहुन बौआ !!
😢😢
चलि जेथीन ओ दू दिन बाद बौआ
फेर नहि जानि कहिया कुचरतै दलान कौआ !!!!😢😢
:गणेश मैथिल
गुवाहाटी

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2016

कविता..भदेश

जहिया सँ धीया धेला भदेश
छुटि गेलैन अपन भाषा अपन भेष
छुटि गेलैन माटि-पानि
छुटि गेलैन घर आँगन
छुटि गेलैन माएक आँचर
जहिया सँ धीया धेला भदेश !!
छुटि गेलैन मीत-हित
छुटि गेलैन रीत-विध
छुटि गेलैन खेत-खरीहान
छुटि गेलैन बाबाक दलान
जहिया सँ धीया धेला भदेश !!
छुटि गेलैन नेन्नाक नेनपन
छुटि गेलैन बाबाक कन्हा
छुटि गेलैन कका-काकीक दुलार
छुटि गेलैन नानी-दादीक खीस्सा-पिहानी
जहिया सँ धीया धेला भदेश !!
घुरि आबू हे धीया
बाट जोहैत अछि गामक बटीया !!!!!
:गणेश मैथिल
गुवाहाटी

शनिवार, 10 सितंबर 2016

कविता: आगि-आगि

आगि-आगि
सबतरि पसरल आगि
कतौ स्वार्थक आगि
कतौ बदलाक आगि
कतौ अलगाववादक आगि
कतौ साम्प्रदायिकताक आगि
आगि-आगि
सबतरि पसरल आगि
केओ जरा' रहल अछि मन
केओ जरा' रहल अछि हृदय
केओ जरा' रहल अछि देह
केओ जरा' रहल अछि घर
केओ जरा' रहल अछि देश
सब जरि झुलैस रहल अछि
आगि-आगि
सबतरि पसरल आगि
आगिक आँच धधैक रहल अछि
भ' रहल अछि सर्वश्व स्वाह :
कतौ आगि उगैल रहल अछि बन्दुक
कतौ आगि उगैल रहल अछि तोप
पूरा विश्व आगिक चुल्हामे अछि झोंकल
पजैर सकैत अछि कखनो परमाणु युद्ध
आगि-आगि
सबतरि पसरल आगि
हे मानब जीव
जीवन भेटैत अछि एकबेर
जीवनक सुख आनन्द लिअ
मानवताक संग जीव लिअ
मिझा दिऔ स्नेहक पानि सँ
सबतरि पसरल आगि !!!
:गणेश मैथिल
गुवाहाटी

सोमवार, 18 जुलाई 2016

कविता..राम अल्लाह

आहः !
हे देव !
कतअ छ नुकाएल तूं ?
अपने स्वर्गमे राज करै छ
धरती पर मानवके लहू लुहान करै छ !!
की स्वर्गोमे तोरा आ अल्लाहमे लड़ाई होइत छ ?
हमरा जनैत तूं सब एकै छ
एकहि सूरज एकहि चन्द्रमा
पूरे जगतके इजोत केने छ ।
केयो द्वितियाक चान देख ईद मनाबै छ
केयो चौठक चान देख चौरचन मनाबै छ
केयो गंगाक पानि सँ तोरा नहाबै छ
केयो गंगाक पानि सँ अजान पढै छ
आब अल्लाह राम दूनु अवतरीत होब
अपन बनाएल सुन्नर संसारके बचाब'
नहि त सनकल मनुष नाश क देतअ !!!
:गणेश मैथिल

कविता..जिनगी फरेब थिक

सब झूठ थिक फरेब थिक
मायाक मकरजालमे फसल अछि इंसान
ओझराएल जिनगी फरीछाएब मुश्किल
एतबे उधेर बुनमे कटैत जा रहल अछि जिनगी
भीन्सरे उठि खुरपी ल
बौइनक ओरीयानमे निकैल जाइत छी
नैन्ना भुटका टकटकी लगौने रहैत अछि
बाबू लबनचुस लेने औता
अतेक गांठमे गठीएल अछि जिनगी
जे गांठके खोलहेमे ओझरा जाइत छी
नेन्ना भुटका टकटकी लगौने रहि जाइत अछि
हम बिसैर जाइत छी लायब लबनचुस ।

गुरुवार, 31 मार्च 2016

छंदक फांद तोड़ि ताड़ि
लीख रहल छी कविता आइ ।
नहि जानै छी रचब हम
दोहा, सोरठा आर चौपाई ।।
मनक भाव उकेर रहल छी
बिनु शब्दक मात्रा गनने आइ ।
कहथि कविता कवि सँ--
हम बनी जन-जनक कंठक बाणी
करु एहन कोनो उपाई ।।

शनिवार, 12 मार्च 2016

सुख शान्ति

ताकि रहल छी ओ
जे भेंट रहल अछि नहि ।
जे अछि राखल सम्मुख
तेकर कोनो कद्रे नहि ।।
वन-वन भटैक
रहल अछि मन ।
हेर रहल अछि
सुख शान्तिक क्षण ।।
जँ ठहैर एक पहर
झाँकब अपन अन्तरमन ।
ह्रदयमे बैसल भेटती शान्ति
भ जाएत सुखमय जीवन ।।
:गणेश मैथिल
गुवाहाटी

रविवार, 6 मार्च 2016

मुफ्तखोरी

जनसंख्या नियंत्रण कोना हेतै
जखन मंगनी मे सरकारी अनाज भेटतै ??
काज करबाक कोन काज
जखन राज्य मे छै मुफ्तखोरी राज ??
के चाहत बीपीएल सँ उपर उठी
बिनु काज सरकारी खजाना लूटी ??
आब जनसंख्या बढाब' मे कोन दोष
जखन खुलल छै मीड डे भोज ??
द क माइरतै भत्ते-भत्ता
नेता हथिआबै अपन सत्ता !!
देशक जनता खुश
मंगनीक चाउर मे
भलेही देशक भविष्य
जाउक चुल्हाक अंगोर मे !!
ठीके कहल गेल छै---
" धोतीवाला देहचीर कमाउक
लूंगीवाला बैसल बैसल खाउक !!"
:गणेश मैथिल
गुवाहाटी

मंगलवार, 1 मार्च 2016

"डेग-डेग चलैथ मैथिल
करैत संङगोर सभ जना,
किछु-किछु जँ सब करबै
हेतै काज महान जेना,
चहूँ दिश पसरत लालीमा
चमकत मैथिल सूर्य जेना ।। "

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

मैथिलि भाई - बंधू ध्यान देव



.
"मैथिल मंच " सँ जुड़य लेल सतत समर्थन लेल धन्यवाद

"मैथिल मंच" पुन: एहि बेर एकटा नव प्रयास प्रारंभ कय रहल अछि जहिमें हमसब समस्त मैथिलजन सँ सम्पर्क कय हुनका सबसँ किछु आग्रह करब जेना कि :

.
1.
एक दोसर सँ यथासंभव सदैव मैथिली भाषा में बात करी  .

2. समस्त मैथिल संस्था सँ अनुरोध जे अपन संस्थाक लोगो कार्यक्रम में बेसी सँ बेसी मिथिला पेंटिंग के प्रयोग करी   गूगल सँ मिथिला पेंटिंग फ्री में नहि लय कोनो ने कोनो कलाकार सँ बनबाबी कलाकार के यथासंभव आर्थिक मदद उचित सम्मान करी


"मिथिला पेंटिंग" सँ जुड़ल कोनो मदद लेल "मैथिल मंच" सदैव मदद लेल तत्पर अछि कोनो तरहक आवश्यकता पर manchmaithil@gmail.com पर मेल वा 9871687391 पर सम्पर्क कय सकय छी।
.
3. "मैथिल मंच" के सदस्य सबसँ आग्रह जे कम सँ कम एकटा वस्त्र मिथिला पेंटिंग सँ बनल जरुर खरीदी ताकि कलाकार के  मंच के तरफ सँ मदद भय सकय। समस्त मैथिल संस्था सँ सेहो अनुरोध जे मंच के अनुसरण करी एहि कार्यक्रम में। मिथिला पेंटिंग सँ बनल टी-शर्ट, कुर्ता, साड़ी, दुपट्टा, कुर्ती अनेको समान हमसब उपलब्ध करा सकय छी। उपलब्धता हेतु manchmaithil@gmail.com या 9871687391 पर Whatsapp कय सकय छी
.
4. समस्त मैथिलजन सँ आग्रह जे एकटा पाग एकटा मिथिला पेटिंग अपन-अपन घर में जरुर राखी दोसर के सेहो प्रेरित करी "मैथिल मंच" हर तरह के हर कीमत के मिथिला पेंटिंग आहां तक पहुंचाबय लेल प्रतिबद्ध अछि  

.5. मैथिलजन जे सब इंटरमीडिएट पास कय कोनो ने कोनो कारणबस पढ़ाई छोड़ि अपन रोजगार में लागि गयलौ वा आगा  नहि पढ़ि सकलौ, हुनका सब लेल "मैथिल मंच", मैथिली भाषा लय स्नातक तक के सुगम पढाई के व्यवस्था लेल प्रतिबद्ध अछि मंच के मार्गदर्शकगण एहि प्रयास के नीक समर्थन कय थहल छथि इच्छुक सदस्य के लेल सब तरहक मदद लेल तैयार छथि। सदस्यगण सँ आग्रह जे आगा बढ़ू अपन आसपास के भाई-बहिन के सेहो प्रेरित करी



6. "मैथिल मंच", मैथिली साहित्य सँ जुड़ल एकटा प्रयास करय जा रहल अछि जहि में मंच आगा सँ मिथिला पेंटिंग के साथे "मैथिली साहित्य" के प्रदर्शनी सेहो लगायत सतत प्रयासरत रहत अपन साहित्य लेल किछु ने किछु नव प्रयास करी। इच्छुक गण मैथिल मंच सम्पर्क कय सकय छी अपन पुस्तक प्रदर्शनी में जोड़य लेल।
.
"मैथिल मंच" के आगा बढ़ाबय लेल आहांसबके सुझाव आपेक्षित अछि हर तरहक सुझाव लेल manachmaithil@gmail.com पर मेल कय सकय छी वा 9871687391 पर Whatsapp पर मैसेज कय सकय छी वा www.maithilmanch.com   साईट पर जा कय Contact Us में जा अपन विचार दय सकय छी। आहां सबहक विचार हमरासब लेल बहुत महत्वपूर्ण अछि  

.जय मिथिला
जय जय मैथिल