" विरह"
छोडि आहाँ गेलंहूँ हमरा
एसगरी अहि वन में
मनक बात कहब केकरा
कें पतियाएत व्यथा हमर...
चहुँ दिश रंग- बिरंगक आ सुगंधक
अछि फुल खिलाएल
मुदा एहि बिच में
हम छी मुर्झाएल...
वन बबुरक गाछ सँ अछि भरल
हर एक डेग पर अछि काँट चुभैत
किछु चंदनक गाछ सेहो अछि
जेँ अपन महक सँ मन-मुग्ध करैत अछि
मुदा क्षणिक !!!
हमर मनक घोडा त'
बबुरक काँट पर दौडैत
आँहाक स्मृति में हेराए जाइत अछि....
जखन सागरक लहर सँ उठल सर्द पवन
हमरा तन के छुबैत अछि
त' बुझि पडैत अछि
जेना आँहाक कोमल हाथ स्पर्श करैत हुअए
मुदा, की सपनो सच होइत अछि ..???
कियाक छोडि गेलंहूँ हमरा एसगरी
आहाँ के त' बुझल छल
कतेक आहाँ सँ स्नेह अछि हमरा
आहाँ बिनु एक पल जिनाई कठीन
ई त दिवस भ' गेल गेला'
की आहांक स्मृति में हम नहि छी ..???
की आहांक ह्रदय हमरा बिनु
नहि कपैत अछि ...???
शायद !
आहाँ निसहाय होएब
नित्य फुला मुर्झाईत होएब
हमरे जेना अहुँ शोनितक घूँट पिबैत होएब
"बिनु पानी माछ" जेना तरपैत होएब
विरहाक आगि में भुस्सा जेना
नहु-नहु जरैत होएब.....
आब बड भेल
बड सह्लों विरहाक दर्द
आउ आब नव वर्ष में
मिल क करी प्रेम सुधाक रसपान.......
:गणेश कुमार झा "बावरा":
गुवाहाटी
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