सोमवार, 23 जनवरी 2012

KAVITA

"विरह"
ह्रदय हमर तोड़ी देलौं
असगर हमरा छोडि गेलौं
हम नित्य आहाँके 'प्रेम' केलौं
अहीकें हम अपन 'प्रियतम' बुझलौं
अहीं सँ हम 'प्रेम' सिखलौं
अहीं लेल हम 'दर्द' सहलौं
'प्रेम-दीप' जारि आहाँ चलि गेलौं
'दीपक लौ ' में हम नित्य जरि रहलौं
हमर प्रेमक भाव नै बुझलौं
ह्रदय सँ हमरा नीकाइल देलौं
पहिने आहाँ एहन निर्मोही नै छलौं
त' फेर कियाक एहन निर्दय भेलौं
कोनो जिनगीक मजबूरी में फसलौं ?
वा कोनो सौतनिक फेरा में परलौं ??
जे हमरा आहाँ बिसैर गेलौं
हम विरहणी बनि नित्य बाट जोहलौं
भुस्सा जकाँ नहु- नहु जरैत रहलौं
आहाँ एखन धरि नै एलौं
कौन कसुरक ई दंड देलौं
हमरा नै आहाँ कहि गेलौं .....
:गणेश कुमार झा "बावरा" :

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