रविवार, 29 जनवरी 2012

GEET

बाजू-बाजू कनियाँ, लेब कुन गहना


लेब कानक बाली वा पएरक पैजनियाँ ....?



नै लेब सजना हम कुनू गहना

हमरा त' चाही आहाँक दुलार सजना ...

बाजू-बाजू सजना, की देब इ गहना ...?



न्योछावर अहाँ पर हमर प्राण कनियाँ

ज' द दीअ अहाँ एक मुस्कान चौबनियाँ....

बाजू-बाजू कनियाँ , लेब कुन गहना.....?



अहीं हमर छी श्रृंगार सजना

बनब सातों जन्म अहीं हमर सजना....

बाजू-बाजू सजना, की देब इ गहना ...?



हम बनल अहीं लेल छी कनियाँ

ई जानैथ विधाता आ सगरो दुनियाँ....

बाजू-बाजू कनियाँ , लेब कुन गहना ....?

:गणेश कुमार झा "बावरा":

गुवाहाटी

शनिवार, 28 जनवरी 2012

कथा: " मनोरथ "

कथा:   "  मनोरथ "
          :गणेश कुमार झा "बावरा":
आई विश्वम्बर बाबूक ज्येष्ठ बालक दिवाकरक घटक आबए वाला छै आ ताए विश्वम्बर बाबू भिनसरे सँ दूरा-दरवाजा साफ -सुथरा करेबा में लागल छलाह |ओ टोल-परोस सँ कुर्सी-टेबल आ बिछौनी मंगबा क' राखि लेने छथि | विश्वम्बर बाबू पुराने मुदा नील- टिनोपाल, इस्त्री देल धोती-कुर्ता पहीर शान सँ दलान पर बैसल छथि |ओ एना उत्सुक छथि, जेना बुझि परैया हुनके घटक आबए वाला होइन | ओना ई कोनो पहिल घटक नै आबि रहल छैन, एहि सँ पहिनो कएकटा घटक 'मोल' मन जोगर नै होएबाक कारण घूमि क' चलि गेल छैन, मुदा एहि बेर विश्वम्बर बाबू के पूर्ण विश्वास छैन जे बेटाक विआह मे टाका गिनेबाक आ गमछा मे बन्हबाक 'मनोरथ' पूर्ण भ' जेतनि |
             दिवाकर बी0ए० पास अछि आ गामे मे ट्यूशन -टाशन करैत अछि | विश्वम्बर बाबू कतेको बेर ओकरा गाड़ी-भाड़ा ताकि आनि देलखिन आ बाहर जाए कमाए लेल कहलखिन , मुदा दिवाकर गामे मे रहि व्यापार करबाक सोइच रहल अछि | विश्वम्बर बाबू कें मन छलनि जे नै बेसी दिन कम सँ कम विआहो तक दिवाकर बाहर रहैत त'  कमौआ पूत कहि क' बेसी दहेजक माँग करितौं | मुदा दिवाकर विश्वम्बर बाबू कें मनोरथ पर पानि फेर देलक | एतबा नै --दहेजक टाका सँ जतय दिवाकर व्यापार करबाक हेतु सोचि रहल अछि ओतहि विश्वम्बर बाबू खेत किनबाक सोचि रहल छथि | देखी, आइ विश्वम्बर बाबू कन्यागत सँ कतेक टाका अईठऐति  छथि |
                          दुपहरियाक एक बाजि रहल अछि | श्यामजी, जे बड़दक पक्किया आ बड़ पैघ दलाल छथि आ संगे वरक दलाली सेहो करैथ छथि, चारि गोट कन्यागतक संग विश्वम्बर बाबूक दलान पर उपस्थित होइत छथिन | विश्वम्बर बाबू अपन छोट बालक मनीष कें आँगन सँ पानि-लोटा लाबय लेल कहैत छथिन | मनीष झट द' दौड़ क' पानि लबैत अछि | ओहो फुर्ती मे अछि, जेँ नै किछु त' डारिहो त' भेटबे करत | कन्यागत पाएर-हाथ-मुँह धो-धा दलान पर बैसैत छथि | श्याम जी कन्यागत आ विश्वम्बर बाबू कें परिचय करबै छथिन | आँगन मे चाय- नास्ताक जुगार भ' रहल अछि |
               कन्यागतक चेहरा सँ ई परिलक्षित भ' रहल अछि, जे वर तकैत-तकैत ओहो थाकि गेल छथि आ जेना-तेना एहि बेर बेटीक विआह क' लेता | कतेको गाम घुमला, कतेको दलानक चाय-पान खेलैथ-पिलैथ, मुदा अपन कन्या हेतु सुयोग्य वर खोजबा मे विफल रहला | कतौ वर पसीन त' घर नै, कतौ घर पसीन त' वर नै आ कतौ घर-वर दुनू पसीन त' मोल नै |  देखी, अई बेर कोन भंगठा लगे छनि........|
आँगन सँ चाय-पान आएल आ कन्यागतक संगें गौंवाँ-घरूआ सेहो खेलक-पिलक | चाय-पान भेलाक पश्चात श्यामजी दिवाकर कें कन्यागतक समक्ष करै छथिन | एक सज्जन किछु पूछ' चाहलखिन
कि बीच्चहि  मे श्यामजी बाजि उठला ---आह! दिवाकरक गुण त' हमरा गाम मे चर्चाक विषय बनल अछि | केकरो सँ भरि मुँह बातो नै करैत अछि | विलक्षण बुद्धिक आ कर्मठ अछि | कन्यागत अपन पूछबाक विचार छोडि दिवाकर कें वापस जेबाक आज्ञा देलखिन |
                 श्यामजी कार्यक्रम कें आगाँ बढाबैत कन्यागत सँ पूछैत छथिन--जँ वर पसीन भेल त' गप्प आगाँ बढ़ाऊ ? --कन्यागत हँ मे उत्तर दैत छथिन | श्यामजी विश्वम्बर बाबू सँ पूछैत छथिन--की कोना ल' द' कन्यागत कें उद्धार करबनि ?-- विश्वम्बर बाबू स्वयं दाम कहबा मे घबड़ा रहल छथि, होइत छनि कि कहीं कम नै कहा जाए ! ताए  दाम तोड़बाक भार श्यामजी पर थोइप दैत छथिन | श्यामजी, दिवाकरक दाम दू लाख इक्यावन हजार कन्यागत कें सुनाबै  छथिन | कन्यागत सँ पहिने विश्वम्बर बाबूक चेहरा सँ पसीना खसय लगैत छनि | हुनका बुझना जाइत छनि जेना श्यामजी कम दाम कहि देलखिन | ओ एकटा फटफटिया सेहो माँग करैत चाहैत छलाह आ ताए श्यामजी कें कानमे फुसुर-फुसुर ई गप्प कहै छथिन | श्यामजी कहैत छथिन-- हँ यौ ! फटफटिया त'   विदाई  मे भेटबे करत |
ई गप्प सुनिते आब कन्यागत कें हाथ-पाएर काँपे लगलनी, ओ बुझि गेला जे इहो वर भाव सँ पटै वाला नै अछि | श्यामजी कन्यागत सँ कहैत छथिन---की कुटुम्ब लेन-देन मंजूर अछि ? कन्यागत दुनू हाथ जोड़ी बाजि उठला--हमर ओकात सवा लाख सँ सवा पाई बेसी देबाक नै अछि | हम कल जोड़ी अपने लोकनि सँ प्रार्थना करै छी, हमरा एतेक मे उद्धार करू ! हम थाकि चुकल छी, आओर बौएबाक सामर्थ हमरा मे नै अछि | मुदा एतेक गप्प सुनैत देरी विश्वम्बर बाबू कें तड़बाक लहिरि  मगज मे ध' लेलकनी  आ  ओ देह-हाथ झारैत अँगना  दुकि गेलाह | ओम्हर हुनकर कनियाँ अलगे आगि-बबूला भेल, एकहि टांगे नाचि रहल छथि | ओ कहैत छथिन--- फल्म्माक बेटा मैट्रिक पास छै तइयो डेढ़ लाख टाका देलकै, हमर बेटा त' बी०ए० पास अछि | श्यामजी सेहो विश्वम्बर बाबू कें पाछाँ लागल आँगन जाइत छथि | अँगना मे विचार-विमर्श कें पश्चात निर्णय होइत अछि जे सवा दू लाख आ एक फटफटिया सँ सवा पाई कम नै हेतनि, बेटी विआह करबाक छनि त' करैथ, नै त' दोसर द्वारि देखौथ |
        श्यामजी दलान पर आबि आँगनक निर्णय कन्यागत कें सुना दैत छथिन | मुदा कन्यागत पूर्णत: जूआ पटैक दैत छथिन | ओहि सँ आगाँ एक डेग नै बढ़' चाहैत छथि | अर्थात फेर भाव नै पटबाक कारण विश्वम्बर बाबूक गमछा ओछौले रहि जाइत छनि आ बेटाक विआह मे टाका गिनेबाक आ बन्ह्बाक "मनोरथ"  मुर्झा जाइत छनि |
                                                           ' इति '

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

KAVITA



" बेटी "
बेटी के जुनि बुझू अभिषाप
बेटीए छैथ सृष्टिक आधार
अपन मिथ्या प्रदर्शनक कारण
नै छिनियो ओकरा सँ ओकर
जीवक जन्म- सिद्ध अधिकार
हटा फेंकू मिथ्या अहँग
बेटी नै छैथ बौक-बहीर-अपँग
बढ़अ दिऔ ओकरा आगाँ
हर एक डेंग पर दिऔ संग
सीता के अछि बहिन ओ
बनूँ पिता जनक समान
बना ओकरा घरक गुड़िया
नै करियो
ओकर इच्छा -आकाँक्षा के बलिदान ....
:गणेश कुमार झा "बावरा"
गुवाहाटी

PHILOSOPHY

एहि संसार में दु:खक की कारन थिक....सब किछु होइतो लोग दुखी रहैत अछि...एहि सन्दर्भ में राजा जनक जीक फिलोसोफी काफी महत्वपूर्ण अछि....जनक जीक कथन छैन जे लोग दू शब्दक कारन दुखी रहैत अछि...प्रथम ---ज' हम केकरो सँ "अपेक्षा" करी आ ओ पूरा नै हुआ .....दोसर---ज' हम केकरो "उपेक्षा" करी..अर्थात "अपेक्षा" आ "उपेक्षा" समस्त दु:खक कारन थिक...ज' हम एहि दू शब्द के मायाजाल सँ छुटि जाई त' गृहस्थ आश्रम में रहितो "योगी" कहाएब.....हुनक कथन छैन जे---हम सब जाही पद पर रही ओही पदक कर्तव्यक निर्वहन करी....कोनो दुःख नै होएत..

सोमवार, 23 जनवरी 2012

GEET

कहै छलिएहि आएब -आएब,
किएअक नै एलिएहि यौ ..?
छोडि हमरा असगर
कोना बिसैर गेलिएहियौ ...??
कहै ...........यौ ....?
दिन -दुपहरिया , साँझ- पराते
निशदिन हम बाट जोहैत छी
कहै ..........यौ...........?
अपन मनक व्यथा ककरा कहबई
हमर बतिया के पतिएतहि ..... ?
कहै ............यौ..........?
सावन बितल, भादव बितल
मुदा हमर नैना एखनौ भींजल
कहै ............यौ........?
पुषक जाड़ सेहो बितल
बितल फागुनक सर्द बसंत
कहै ..........यौ .........?
आम मजैर क टिकुला भ गेल
ज्येष्ठ में पाइक खसअ लागल
कहै ........यौ...........?
सब ऋतू बीत घुरी फेर आएल
मुदा आहाँ नै घुरी फेर एलहूँयौ
कहै ............यौ........?
:गणेश कुमार झा "बावरा"
गुवाहाटी

KAVITA

"विरह"
ह्रदय हमर तोड़ी देलौं
असगर हमरा छोडि गेलौं
हम नित्य आहाँके 'प्रेम' केलौं
अहीकें हम अपन 'प्रियतम' बुझलौं
अहीं सँ हम 'प्रेम' सिखलौं
अहीं लेल हम 'दर्द' सहलौं
'प्रेम-दीप' जारि आहाँ चलि गेलौं
'दीपक लौ ' में हम नित्य जरि रहलौं
हमर प्रेमक भाव नै बुझलौं
ह्रदय सँ हमरा नीकाइल देलौं
पहिने आहाँ एहन निर्मोही नै छलौं
त' फेर कियाक एहन निर्दय भेलौं
कोनो जिनगीक मजबूरी में फसलौं ?
वा कोनो सौतनिक फेरा में परलौं ??
जे हमरा आहाँ बिसैर गेलौं
हम विरहणी बनि नित्य बाट जोहलौं
भुस्सा जकाँ नहु- नहु जरैत रहलौं
आहाँ एखन धरि नै एलौं
कौन कसुरक ई दंड देलौं
हमरा नै आहाँ कहि गेलौं .....
:गणेश कुमार झा "बावरा" :

रविवार, 22 जनवरी 2012

KAVITA

"जागु"
जागु-जागु यौ मिथिलावासी आजु जागु
घोर दहेजक आगि में आजु
जरि रहल अछि मिथिला ,
मिथिला के सिया(बेटी) के बचाऊ यौ
जागु ..........जागु ........जागु
बरदक जकाँ खुट्टे-खुट्टे
बिका रहल छथि वर,
केकरो मोल लाख टका
आ केकरो दस लाख
जागु ......जागु......जागु
एहन की अन्याय करैत छी
सुन्नर कनियाँ नहि देखैत छी,
देखैत छी बस टाका यौ
जागु....जागु.........जागु
विवाह सनक पवित्र बंधन कें
कमाए कें धंधा नहि बनाऊ यौ,
मिथिला कें मर्यादा कें बचाऊ यौ
जागु.......जागु.........जागु
पढ़ल- लिखल नवयुवक सभ सँ
' गणेश' करैथ निवेदन यौ----
दहेज सनक कैंसर सँ
मिथिला कें मुक्ति दीयाऊ यौ
जागु........जागु............जागु

:गणेश कुमार झा "बावरा":
गुवाहाटी
जागू जागे

GAJAL

कतेक जरबई छी आहाँ , करैज हमर
बनि स्नेहक सागर आहाँ , जुड़ाअ दीअ करैज हमर
ज्येष्ठक खेत जकाँ अछि फाटल, करैज हमर
बनि सावनक बादल आहाँ , जुड़ाअ दीअ करैज हमर
आमावश्याक अन्हरिया जकाँ अछि अन्हार, करैज हमर
बनि पूर्णिमाक चान आहाँ , जुड़ाअ दीअ करैज हमर
अछि पतझड़ जकाँ झडल-मूर्झाल, करैज हमर
बनि बसन्तक बसात आहाँ , जुड़ाअ दीअ करैज हमर
निहौरैथ 'गणेश' नै आब दुखाबू, करैज हमर
बनि हमर प्रियतमा आहाँ , जुड़ाअ दीअ करैज हमर
:गणेश कुमार झा 'बावरा'
गुवाहाटी

KAVITA....kaincha


कैंचा
बिनु कैंचा नहि भेटए शिक्षा
बिनु कैंचा नहि भेटए दीक्षा
बिनु कैंचा नहि भेटए स्नेह दुलार
बिनु कैंचा नहि भेटए मान- सम्मान
कैंचा बनल अछि कैंची
कुतैर रहल अछि प्रेम - सम्बन्ध,
आजु कैंचा के खातिर
बेटी के होइछ प्राण -हरण
गर्भधारण सँ मृत्युकाल धरि
कैंचा नहि छोडाए संग,
बिनु कैंचा नहि पुरहित- पंडित
ग्रहण करए श्राद्धक अन्न
मंदिर जाउ व जाउ मस्जिद
बिनु कैंचा नहि हुअए पूजा संपन्न
कशी जाउ वा जाउ मथुरा
बिनु कैंचा नहि हो गंगा -स्नान
चाहे हुअए इलेक्शन वा सेलेक्शन
बिनु कैंचा नहि कोनो एक्शन
ज दुहु हाथ खोलि फेकू कैंचा
फेर देखू नियोक्ताक रिएक्शन
कैंचा हुअए त' दुलारे कनियाँ
बिनु कैंचा ललकारे कनियाँ
धिया -पुताक त' हाल नहि पूछू
नहि अपना त' ल' आबए पैंचा
कैंचा कें चारू दिश अछि चर्चा
देव, गुरु, मुनि बनल अछि कैंचा ......
:GANESH KUMAR JHA "BAWRA"
GUWAHATI
(HAMAR EE KAVITA "JAI MITHILA, JAI MAITHILI" SANSTHA DWARA 14 JANUARY,2012 KE TRITYA PURASKAR SA PURASKRIT ACHHI)

KAVITA...Aaha binu


अहाँ बिनु
अहाँ केहन छी
तकर कोनो खबरि नै
अहाँ आएब कहिया
तेकर कोनो तिथि नै....
हम एतय बताह भेल छी
जिनगी हमर निराश लगैया
बिनु अहाँ हमर जिनाई
हमरा व्यर्थ बूझि परैया...
अहाँ आउ जल्दी आउ
आब विलम्ब करू जूनि
देखू! हम अहाँक बाट में
अपन नयन ओछेने छी....
पल-पल हर एक पल
हम अहाँ के याद करी
जखन हम एकसरि रही
अहाँक छवि नयन में निहारी...
एकटा कथा जनै छी ?
हम अहीं सँ प्रेम करै छी
सपनहु में हम
दोसर के नहि देखैत छी....
हम जनै छी
अहाँ के हमर ई कथा
मिथ्या बुझाइत होएत
सएह सोचि होईया व्यथा...
मुदा, एक कथा सच थिक-
हमर प्रेम
हम अहाँ सँ बहुत प्रेम करैत छी
बहुत- बहुत प्रेम...............
:Ganesh Kumar Jha "BAWRA"
GUWAHATI

KAVITA

"संघर्ष"
हम पथ के पथिक एसगरी
छोडि देलक सब संग हमर
मुदा हम स्वयं के नहि छोड्लहूँ...
नहि निराशा सँ कहियो घबरेलहूँ
नहि असफलता सँ मान्लहूँ हारि
जे भेटल स्वीकार केलहूँ
आ आगू बढ़ैत गेलहूँ
क्याकि स्वयं पर छल भरोषा...
सिखने छलहूँ हम समंदर सँ
"केनाई संघर्ष"
जनने छलहूँ हम आगि सँ
"जरनाई"
महशुश केने छलहूँ हम
"वायु के गति"
नपने छलहूँ हम
"आकाश के ऊँचाई"
बुझल छल हमरा सूरजक सत्य
"हुनक उगनाई-दूबनाई"
एहिलेल , हम नहि छोड्लहूँ कहियो
"अपन कर्मक पथ"
सदा करैत रह्लहूँ "संघर्ष"....
:Ganesh Kumar Jha "BAWRA"
Guwahati

KAVITA

" विरह"
छोडि आहाँ गेलंहूँ हमरा
एसगरी अहि वन में
मनक बात कहब केकरा
कें पतियाएत व्यथा हमर...
चहुँ दिश रंग- बिरंगक आ सुगंधक
अछि फुल खिलाएल
मुदा एहि बिच में
हम छी मुर्झाएल...
वन बबुरक गाछ सँ अछि भरल
हर एक डेग पर अछि काँट चुभैत
किछु चंदनक गाछ सेहो अछि
जेँ अपन महक सँ मन-मुग्ध करैत अछि
मुदा क्षणिक !!!
हमर मनक घोडा त'
बबुरक काँट पर दौडैत
आँहाक स्मृति में हेराए जाइत अछि....
जखन सागरक लहर सँ उठल सर्द पवन
हमरा तन के छुबैत अछि
त' बुझि पडैत अछि
जेना आँहाक कोमल हाथ स्पर्श करैत हुअए
मुदा, की सपनो सच होइत अछि ..???
कियाक छोडि गेलंहूँ हमरा एसगरी
आहाँ के त' बुझल छल
कतेक आहाँ सँ स्नेह अछि हमरा
आहाँ बिनु एक पल जिनाई कठीन
ई त दिवस भ' गेल गेला'
की आहांक स्मृति में हम नहि छी ..???
की आहांक ह्रदय हमरा बिनु
नहि कपैत अछि ...???
शायद !
आहाँ निसहाय होएब
नित्य फुला मुर्झाईत होएब
हमरे जेना अहुँ शोनितक घूँट पिबैत होएब
"बिनु पानी माछ" जेना तरपैत होएब
विरहाक आगि में भुस्सा जेना
नहु-नहु जरैत होएब.....
आब बड भेल
बड सह्लों विरहाक दर्द
आउ आब नव वर्ष में
मिल क करी प्रेम सुधाक रसपान.......
:गणेश कुमार झा "बावरा":
गुवाहाटी

KAVITA--बड़का काका"

"बड़का काका"
बड़का काका छलाह नामी- गामी
मुदा छलाह बड्ड कंजूस,
चारिटा छलैन्ह बेटा हुनका
मुदा नै छलैन्ह एकटा सपूत
जखन हुनक धड़ खसलैन
बेटा सब लेलकनी बटुआ छीन,
जकरा लेल पेट काईट जमा केलनि
वाएह सब केलकनी हुनका भिन्न
बड़का काका ओछाइन पर पड़ल
गुन्ह-गिन्जन भेला
अपन देख इ दशा
अपना भाग्य पर कनैत छलाह
जखन मृत्यु काल समीप छलैन्ह
वाक् -नाड़ी सब बंद छलैन्ह
बेटा सब देलकनी बेतरनी कराए
पुतौहू सब झौहट पारि कानै लगलनी
नाती -पोता सब देलकनी धार कात पहुँचाए
बड़का काका के बड्ड भाग्य-
जीवैत नै लगौलनी कहियो तेल
मुदा मुइला उपरांत लगलनी सौंसे देह घृत,
औछाइन पड़ला त पानि नै भेट्लनी
मुदा मुइला उपरांत गंगा -स्नान ,
जीवैत कहियो गाएक दूध नै पिला
मुदा मुइला उपरांत वैदिक श्राद्ध,
जीवैत नै भड़ी पेट खेला भात
मुदा मुइला उपरांत गामक भोज
बड़का काका केलनि आकाशवाणी --
जूनि करू एहन व्यव्हार
जीवल में देलहूँ औंघराए कात
मुइला उपरांत लुटाबई छी
खोलि दुनु हाथ ........!!!!!!!!!!!
:गणेश कुमार झा "बावरा"
गुवाहाटी
जय मिथिला, जय मैथिलि... समस्त मिथिलावाशी के गणेशक प्रणाम...!!!!
"हम छी मैथिल मिथिलावाशी मैथिलि मधुरभाषी ....."
हमर ई ब्लॉग अपने लोकन के मैथिलि के सुमधुर काव्य आ संगीतमय रचना स साक्षात् कराएत.....
अपने सबहक आशिषक अभिलाषी.....