शनिवार, 17 अक्टूबर 2015

नाटकः जागौ दृश्त 11

नाटक: जागु
दृश्यः ग्यारह
समयः दोपहर
स्थानः आँगन
(लक्ष्मी चाउर फटकैत)
नारायणः (प्रवेश करैत) हे ऐ, सुनै छी !! कतअ गेलौं ?
लक्ष्मीः की भेल ? एतहि त छी
ना0: एकटा गप बुझलिए ?
ल0: से की ?
ना0; बिल्टू कलेक्टर बनि गेलाह
ल0: कोन बिल्टू ? सरसों वाली काकीके बेटा ?
ना0: नञि..नञि ! बिहारी वाली भौजीके बेटा ।
ल0: से के कहलक ?
ना0: चौक पर हुनकर अभिनन्दन समारोह भेलहिए । आर बुझैत छीयहि ? पूरे भारत मे टाॅप केलैथा ।
ल0: ई त बड्ड हर्षक गप सुनेलौं !! बिहारीवाली बहीन बड्ड दुःख काटि बेटाके पढेली, मुदा, सुखक घड़ी नहि देख सकली !!
ना0: कने टी0भी0 खोलीयौने, समाचार कहैत हेतहि , अपन गामके नाम सेहो देखाओत
ल0: की आहाँके बुझल नहि अछि पन्द्रह दिन सँ गाम मे बिजली नहि छै !! आ नहि जानि कहिया तकि ई हाल रहत !!
ना0: इहो बिहार सरकार बुड़िएले अछि !
ल0: ताँए ने कहैत छी--बाहर कमाए जाउ जतअ चौबीसो घंटा बिजली रहैत छै...गामक उब भड़ल जिनगी सँ मुन उबि गेल अछि...
ना0: हे !केहन गप कहैत छी !!! गाम सन प्रेम आ शान्ति भड़ल जिनगी शहर मे कतअ भेटत..शहर मे लोक भौतिक सुख सुविधा त प्राप्त करैया, मुदा प्रकृतिक आनन्द आ आत्मिक सुख नहि भेट पबैत छै !! ....हे चिन्ता जुनि करू , बिल्टू कलेक्टर बनि गेलाह आब गामक काया पलैट जाएत

ल0: से के जनैत अछि जे बिल्टू गाम लेल काज करताह ??..प्रायः देखल जाइत अछि जे कोनो व्यक्ति पैघ पद पबैत अपन जननी, जन्मभूमि आ जनलोकके बिसैर जाइत अछि !!
ना0: हे ! एना जुनि कहू !! सब केओ एकहि रंगके नञि ने होइत अछि ! हम बिल्टूके नाञिन्हएटा सँ जनैत छी , ओ स्वभावत् मातृभूमि स्नेही छैथ आ सेवा भाव कुटि कुटि क भड़ल छैन ।।
ल0: तखन त हुनका सँ आश काएल जाए
ना0:आ बुझै छी ?---बिल्टू गरीब होइतो कहियो टाका (रूपया)के बेसी महत्व नहि देलक । ओ बाँटि चुटि खाए मे विश्वाश रखैत अछि आ दोसरक कल्याण मे अपन कल्याण बुझैत अछि....आब अहीं कहू-- एहन लोक सँ त गामक विकाशक अपेक्षा कऐ सकैत छी !!!
ल0: भगवती हुनकर याह सुधि-बुधि बनौने रहथुन जाहि सँ गामक दुःख दुर हौक
ना0: जनै छी ! हर माए-बापके अपना धिया-पुता सँ अपेक्षा रहैत छनि जे हुनक धिया-पुता पैघ पद पर बैसैन, मुदा केओ ई शिक्षा नहि दैत छथिन कि बौआ पैघ भ  समाजके नहि बिसरब ।।....हे जनै छी ??
ल0: की ?
ना0: हमरा मन मे एकटा विचार अछि....अपन गीता एहिबेर आठवाँ मे छैथ, स्त्रीगण ओकर विआह लेल कहैत हेती, मुदा गीरह बान्हि लिअ कि जावत गीता डाॅक्टर नहि बनती हम हुनकर विआह नहि करेबैन..
ल0: ई त बड्ड निक विचार अछि, लोकक कहला सँ की हेतै, गीता हमर बेटी अछि, हमर  सब शख-मनोरथ त ओकरे सब सँ पूरा होएत ने !!
....मुदा डाॅक्टर बनेबा लेल त बेसी टका चाही, कतअ सँ आओत एतेक टका ?
ना0: हे आहाँ टका लेल जुनि चिन्तित हौ, हम आर मेहनत करब, खेत गहना सब बेच देब, मुदा अपन बेटीके डाॅक्टर बना क रहब !!..गामक लोक बड्ड कष्ट कटलकाए ! !! अपन बेटी डाॅक्टर बनि गाम मे अस्पताल खोलतीह आ गामक लोकके सेवा करतीह ...
ल0: हम आहाँक हर एक डेग पर संग छी । दुनू गोटे मिल अपन बेटीके डाॅक्टर बना समाजके समर्पित क देब, कारण.  होनहार पुत एकके नञि समाजक पुत होइत अछि
ना0: ठीक कहलौं, हमर बेटी समाजक बेटी !!!!!!!!!!!!!
(पर्दा खसैत, दृश्य ग्यारह समाप्त)