रविवार, 18 अक्टूबर 2015

नाटकः जागु 12

नाटकः जागु
दृश्यः बारह(अन्तिम)
समयः दुपहरिया
(दश वर्ष बाद गीता डाॅक्टर बनि गाम अबैत छथि,)
(नारायण भोजन क रहल छथि आ लक्ष्मी पंखा हौंक रहल छथिन)
गीता:(नेपथ्य सँ) माए ! माए !!
ल0:(अकचकाइत) बुझि पड़ैया गीता एली ! (उठि दरवजा दिश जाइत)
गीताः(प्रवेश, माएके पएर छू प्रणाम) गोर लगैत छी
ल0: खूब निके रहू ! (गीताके करेजा सँ लगबैत) निके छी ने ? आहाँक देखबाक लेल आँखि तरैस गेल छल ।
गीताः माए, आहाँ सबके देखबाक लेल हमहुँ बड्ड बेकल छलौं ! हमरो निक नञि लागैत छल ! मुदा, किछु पाबे लेल किछु गवाँबे पड़ै छै ! माए, आब हम सदैव अहीं लंग रहब, कारण, हमर पढाई पूर्ण भ गेल, हम डाॅक्टर बनि गेलौं
ल0:...की कहलौं !!! आहाँ डाॅक्टर बनि गेलौं !!!! हे भगवती ! आहाँक कोटि कोटि धन्यवाद!!
ना0:(भोजन पर सँ उठि)..हे ऐ गीता माए ! अहीं सबटा स्नेह न्यौछावर करब बेटी पर , की हमरो ओकर मुँह देखअ देब !! कने देखी डाॅक्टर बनि हमर बेटी केहन लागैत छथि !! (गीता पएर छू प्रणाम करैत)..भगवान सदैव आहाँके खुश आ कामयाब राखैथ । (गीताके करेजा सँ लगबैत)...गीता! आहाँ त एकदम ओहने छी कनेको बदलाव नहि, वाएह मैथिल संस्कार आ संस्कृति मे ढलल !! हमरा त होइत छल आहाँ अँग्रेजीएन डाॅक्टराइन बनि गेल होएब
गीताः बाबूजी, ई कतअ लिखल अछि जे डाॅक्टर आ इंजीनियर बनबा लेल अपन संस्कार आ संस्कृतिके छोड़अ परत !! हमर डाॅक्टर बननाइ आहाँ सबहक देल संस्कारक प्रतिफल थिक !! हमरा त गौरव अछि जे हम मिथिलाके बेटी छी आ जन्म-जन्मान्तर एहि धरती पर जन्म लैत रही !! हम त एकहिटा गप बुझै छी--
"हम छोड़ब नहि अपन चालि
हम पकड़ब नहि दोसर डारि
किएक त
हम छी मिथिलावाशी !!
कम्प्युटर हम सीखब
चानो पर जाएब
जाएब हम सूर्यो पर
मुदा बिसरब नहि अपन वाणी
किएक त
हम छी मिथिलावाशी !!!
 ना0:(गौर्वान्वित होइत) वाह बेटी वाह !! आइ हमर ह्रदय प्रफुल्लित अछि , हमरा अपना पर गौरव अछि जे हम आहाँक पिता छी !!!!
गीताः माए, बौआ सबके आ दाइके नहि देखैत छी !!
ल0: बौआ सब त स्कूल गेल अछि आ दाइ घर मे बिमार पड़ल छथि , सदिखन गीता गीता रट्ट लगौने रहैत छथि
गीताःमाए, आब हम आबि गेलौं ने , दाइ बिल्कुल ठीक भ जेतीह (कहैत घर मे प्रवेश, लाल काकी ओछाइन पर बिमार पड़ल छथि)..दाइ गोर लगैत छी !!
ला0का0:(उकासी करैत उठि बैसैत छथि)...गीता(थड़थड़ाएल आवाज) कखन एलौं ? खूब निके रहू, की समाचार ?(कहैत छाती सँ लगा लैत छथिन)..हम त आब जा रहल छी
गीता:..नञि दाइ !!! आहाँके किछु नञि होएत , हम छी ने, हम अपना हाथ सँ आहाँके इलाज करब
ला0का0: आहाँ एतअ थोड़े ने रहब !! आहाँक विआह होएत, सासुर जाएब आ शहर मे रहि डाॅक्टरी करब
गीताः दाइ, हम डाॅक्टरी पढाई शहर मे रहबाक लेल नहि पढलौंहाँ, हमर बचपनक सपना अछि डाॅक्टर बनि गाम मे अस्पताल खोलनाइ । शहर मे त बहुतो पैघ पैघ डाॅक्टर अछि, मुदा गाम मे नञि, जाहि कारण आइ तकि नञि जानि कतेको नेन्ना अकाल कालके गाल मे समा गेल; कतेकों  माए प्रसूतीके दौरान स्वर्ग सीधारि गेली
ला0का0: मुदा अस्पताल लेल त बहुतो टाका चाही से कतअ सँ आओत ??
गीताः दाइ, हम समाजक लोक सँ कहबैन--श्राद्ध आ विआह मे अनेरों जे टाका बहाबैत छथि ओहि टाकाके अस्पताल आ स्कूल बनाबअ मे लगाबौथ, जाहि सँ  समाज निरोइग आ शिक्षीत होएत !!!
विष्णुदेवः(नेपथ्य सँ)नारायण भाई छी यौ ?? सुनलौंहाँ गीता एलीहाए !!
ना0:(नेपथ्य सँ) विष्णुदेव भाई !हाँ गीता एलीहाए !! आऊ आऊ
(ना0,  वि0देव आ लक्ष्मीक प्रवेश)
(गीता वि0देवके पएर छू प्रणाम करैत)
वि0दे0:"यसस्वी भवः" देखलौं लाल काकी, हमर गप कतेक सत्य भेल ! आइ आहाँक पोती डाॅक्टर बनि गामक नाम रौशन केलीहाए । जँ ओहि दिन गीताके स्कूल नहि भेजतीयहि  त आइ ई समाज एक होनहार, बुद्धिमान आ परोपकारी संतानके प्राप्त नहि क सकैत ।।
ला0का0: से त ठीक कहै छी , ओहि दिन हमर मति मइर गेल रहाए जे गीताके स्कूल जाए सँ रोकैत रही । मुदा आइ हम जानि गेलौं जे बेटा बेटी मे कोनो अन्तर नहि छै । बेटा हो वा बेटी बस सपूत हेबाक चाही ।
गीताः कक्का , आहाँक हम सदैव आभारी रहब, आहाँक सहयोगक बलबूते आइ हम डाॅक्टर बनलौं
ना0: विष्णुदेव भाई, आब गीता लेल एकटा लड़का तकियो
(गीता लजा जाइत छथि)
वि0दे0: जुनि चिन्ता करू नारायण भाई, हमर गीता लेल त एक सँ राजकुमारके लाइन लाइग जेतै
ल0: से किएक नहि....हमर बेटी छइथे एतेक गुनवन्ती !!!!!!!!
(सब केयो ठहाका लगबैत )
(पर्दा खसैत अछि आ नाटकक समाप्ति)
लेखकक आह्वानः
अन्ततः हम एतबा कहब----
"बेटीके जुनि बुझू अभिशाप
बेटीए छथि सृष्टिक आधार
अपन मिथ्या प्रदर्शनक कारण
नहि छीनियौ ओकरा सँ
ओकर जीवक जन्मसीद्ध अधिकार !!
हटा फेंकू मिथ्या अहंग
बेटी नहि छथि बौक बहीड़ अपंग
बढ़े दियौ ओकरा आगाँ
हर एक डेग पर दियौ संग
सीताके बहीन अछि ओ
बनू पिता जनक समान
बना ओकरा घरक गुड़िया
नहि करियौ
ओकर इच्छा आकाँक्षाके बलिदान !!"
हम एतबा कहब---
जँ उचित बुझि पड़ाए
त गप पर देब ध्यान
तहने हम बुझब
हमर मेहनतक भेटल परिणाम !!
आब आहाँ लोकनिके
'गणेशक' शत् शत् प्रणाम !!
जोर सँ कहू एक बेर
हमर मिथिला महान !!!!!!