|| मैथिलि - हनुमान चालिसा ||
लेखक - रेवती रमण झा " रमण "
|| दोहा ||
गौरी नन्द गणेश जी , वक्र तुण्ड महाकाय ।
विघन हरण मंगल कारन , सदिखन रहू सहाय ॥
बंदउ शत - शात गुरु चरन , सरसिज सुयश पराग ।
राम लखन श्री जानकी , दीय भक्ति अनुराग । ।
|| चौपाइ ||
जय हनुमंत दीन हितकारी ।
यश वर देथि नाथ धनु धारी ॥
श्री करुणा निधान मन बसिया ।
बजरंगी रामहि धुन रसिया ॥
जय कपिराज सकल गुण सागर ।
रंग सिन्दुरिया सब गुन आगर ॥
गरिमा गुणक विभीषण जानल ।
बहुत रास गुण ज्ञान बखानल ॥
लीला कियो जानि नयि पौलक ।
की कवि कोविद जत गुण गौलक ॥
नारद - शारद मुनि सनकादिक ।
चहुँ दिगपाल जमहूँ ब्रह्मादिक ॥
लाल ध्वजा तन लाल लंगोटा ।
लाल देह भुज लालहि सोंटा ॥
कांधे जनेऊ रूप विशाल ।
कुण्डल कान केस धुँधराल ॥
एकानन कपि स्वर्ण सुमेरु ।
यौ पञ्चानन दुरमति फेरु ।।
सप्तानन गुण शीलहि निधान ।
विद्या वारिध वर ज्ञान सुजान ॥
अंजनि सूत सुनू पवन कुमार ।
केशरी कंत रूद्र अवतार ॥
अतुल भुजा बल ज्ञान अतुल अइ ।
आलसक जीवन नञि एक पल अइ ॥
दुइ हजार योजन पर दिनकर ।
दुर्गम दुसह बाट अछि जिनकर ॥
निगलि गेलहुँ रवि मधु फल जानि ।
बाल चरित के लीखत बखानि ॥
चहुँ दिस त्रिभुवन भेल अन्हार ।
जल , थल , नभचर सबहि बेकार ॥
दैवे निहोरा सँ रवि त्यागल ।
पल में पलटि अन्हरिया भागल ॥
अक्षय कुमार के मारि गिरेलहुं ।
लंका में हरकंप मचयलहूँ ॥
बालिए अनुज अनुग्रह केलहु ।
ब्राहमण रुपे राम मिलयलहुँ ॥
युग चारि परताप उजागर ।
शंकर स्वयंम दया के सागर ॥
सूक्षम बिकट आ भीम रूप धारि ।
नैहि अगुतेलोहूँ राम काज करि ॥
मूर्छित लखन बूटी जा लयलहुँ ।
उर्मिला पति प्राण बचेलहुँ ॥
कहलनि राम उरिंग नञि तोर ।
तू तउ भाई भरत सन मोर ॥
अतबे कहि द्रग बिन्दू बहाय ।
करुणा निधि , करुणा चित लाय ॥
जय जय जय बजरंग अड़ंगी ।
अडिंग ,अभेद , अजीत , अखंडी ॥
कपि के सिर पर धनुधर हाथहि ।
राम रसायन सदिखन साथहि ॥
आठो सिद्धि नो निधि वर दान ।
सीय मुदित चित देल हनुमान ॥
संकट कोन ने टरै अहाँ सँ ।
के बलवीर ने डरै अहाँ सँ ॥
अधम उदोहरन , सजनक संग ।
निर्मल - सुरसरि जीवन तरंग ॥
दारुण - दुख दारिद्र् भय मोचन ।
बाटे जोहि थकित दुहू लोचन ॥
यंत्र - मंत्र सब तन्त्र अहीं छी ।
परमा नंद स्वतन्त्र अहीं छी ॥
रामक काजे सदिखन आतुर ।
सीता जोहि गेलहुँ लंकापुर ॥
विटप अशोक शोक बिच जाय ।
सिय दुख सुनल कान लगाय ॥
वो छथि जतय , अतय बैदेही ।
जानू कपीस प्राण बिन देही ॥
सीता ब्यथा कथा सुनि कान ।
मूर्छित अहूँ भेलहुँ हनुमान ॥
अरे दशानन एलो काल ।
कहि बजरंगी ठोकलहुँ ताल ॥
छल दशानन मति के आन्हर ।
बुझलक तुच्छ अहाँ के वानर ॥
उछलि कूदी कपि लंका जारल ।
रावणक सब मनोबल मारल ॥
हा - हा कार मचल लंका में ।
एकहि टा घर बचल लंका में ॥
कतेक कहू कपि की - की कैल ।
रामजीक काज सब सलटैल ॥
कुमति के काल सुमति सुख सागर ।
रमण ' भक्ति चित करू उजागर ॥
|| दोहा ||
चंचल कपि कृपा करू , मिलि सिया अवध नरेश ।
अनुदिन अपनों अनुग्रह , देबइ तिरहुत देश ॥
सप्त कोटि महामन्त्रे , अभि मंत्रित वरदान ।
बिपतिक परल पहाड़ इ , सिघ्र हरु हनुमान ॥
|| 2 ||
॥ दुख - मोचन हनुमान ॥
अहाँ छी दुख बिपति के संगी
मान चित अपमान त्यागि कउ ,
संत सुग्रीव विभीषण जी के,
अहाँ , बुद्धिक बल सँ देलों राज ॥
नीति निपुन कपि कैल मंत्रना
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
बुझि ब्यथा , मूर्छित मन भेल ।
विह्बल चित विश्वास जगा कउ
लागल भूख मधु र फल खयलो हूँ
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख--
बंदि प्रभू अविलम्ब छुरा कउ
बज्र गदा भुज बज्र जाहि तन
कत योद्धा मरि गेल फिरंगी ,
जगत जनैया ---अहाँ छी दुख -
वर शक्ति वाण उर जखन लखन ,
लगि मूर्छित धरा परल निष्प्राण ।
पल में पलटि बचयलहऊ प्राण ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
नाग फास में बाँधी दशानन ,
गरुड़ राज कउ आनी पवन सुत ,
जपय प्रभाते नाम अहाँ के ,
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
ज्ञानक सागर , गुण के आगर ,
जे जे अहाँ सँ बल बति यौलक ,
अहाँक नाम सँ थर - थर कॉपय ,
भूत - पिशाच प्रेत सरभंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
पर तिरिया लउ कउ गेलै परान ।
कानै लय कुल नञि रहि गेलै ,
अहाँक कृपा सँ , यौ हनुमान ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख -
हे जितेन्द्र कपि दया निधान ।
"रामण " ह्र्दय विश्वास आश वर ,
अहिंक एकहि बल अछि हनुमान ॥
यौ हमरो रक्षा करू अड़ंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख ----
|| 3 ||
हनुमान चौपाई - द्वादस नाम
॥ छंद ॥
जय कपि कल कष्ट गरुड़हि ब्याल- जाल
केसरीक नन्दन दुःख भंजन त्रिकाल के ।
पवन पूत दूत राम , सूत शम्भू हनुमान
बज्र देह दुष्ट दलन ,खल वन कृषानु के ॥
कृपा सिन्धु गुणागार , कपि एही करू पार
दीन हीन हम मलीन,सुधि लीय आविकय ।
"रमण "दास चरण आश ,एकहि चित बिश्वास
अक्षय के काल थाकि गेलौ दुःख गाबि कय ॥
चौपाई
जाऊ जाहि बिधि जानकी लाउ । रघुवर भक्त कार्य सलटाउ ॥
यतनहि धरु रघुवंशक लाज । नञि एही सनक कोनो भल काज ॥
श्री रघुनाथहि जानकी ज्ञान । मूर्छित लखन आई हनुमान ॥
बज्र देह दानव दुख भंजन । महा काल केसरिक नंदन ॥
जनम सुकरथ अंजनी लाल । राम दूत कय देलहुँ कमाल ॥
रंजित गात सिंदूर सुहावन । कुंचित केस कुन्डल मन भावन ॥
गगन विहारी मारुति नंदन । शत -शत कोटि हमर अभिनंदन ॥
बाली दसानन दुहुँ चलि गेल । जकर अहाँ विजयी वैह भेल ॥
लीला अहाँ के अछि अपरम्पार । अंजनी लाल कर उद्धार ॥
जय लंका विध्वंश काल मणि । छमु अपराध सकल दुर्गुन गनि ॥
यमुन चपल चित चारु तरंगे । जय हनुमंत सुमित सुख गंगे ॥
हे हनुमान सकल गुण सागर । उगलि सूर्य जग कैल उजागर ॥
अंजनि पुत्र पताल पुर गेलौं । राम लखन के प्राण बचेलों ॥
पवन पुत्र अहाँ जा के लंका । अपन नाम के पिटलों डंका ॥
यौ महाबली बल कउ जानल । अक्षय कुमारक प्राण निकालल ॥
हे रामेष्ट काज वर कयलों । राम लखन सिय उर में लेलौ ॥
फाल्गुन साख ज्ञान गुण सार । रुद्र एकादश कउ अवतार ॥
हे पिंगाक्ष सुमित सुख मोदक । तंत्र - मन्त्र विज्ञान के शोधक ॥
अमित विक्रम छवि सुरसा जानि । बिकट लंकिनी लेल पहचानि ॥
उदधि क्रमण गुण शील निधान ।अहाँ सनक नञि कियो वुद्धिमान॥
सीता शोक विनाशक गेलहुँ । चिन्ह मुद्रिका दुहुँ दिश देलहुँ ॥
लक्षमण प्राण पलटि देनहार । कपि संजीवनी लउलों पहार ॥
दश ग्रीव दपर्हा ए कपिराज । रामक आतुरे कउलों काज ॥
॥ दोहा ॥
प्रात काल उठि जे जपथि ,सदय धराथि चित ध्यान ।
शंकट क्लेश विघ्न सकल , दूर करथि हनुमान ॥
|| 4 ||
जय -जय बजरंगी , सुमतिक संगी -
मुनि जन हितकारी, सुत त्रिपुरारी -
नाथहि पथ गामी , त्रिभुवन स्वामी
तिहुँ लोक उजागर , सब गुण आगर -
मारुती नंदन , सब दुख भंजन -
वर गदा सम्हारू , संकट टारू -
कालहि गति भीषण , संत विभीषण -
वर खल दल मारल , वीर पछारल -
|| 5 ||
॥ हनुमान वंदना ॥
शील नेह निधि , विद्या वारिध
कल कुचक्र कहाँ छी ।
मार्तण्ड ताम रिपु सूचि सागर
शत दल स्वक्ष अहाँ छी ॥
कुण्डल कणक , सुशोभित काने
वर कच कुंचित अनमोल ।
अरुण तिलक भाल मुख रंजित
पाँड़डिए अधर कपोल ॥
अतुलित बल, अगणित गुण गरिमा
नीति विज्ञानक सागर ।
कनक गदा भुज बज्र विराज
आभा कोटि प्रभाकर ॥
लाल लंगोटा , ललित अछि कटी
उन्नत उर अविकारी ।
वर बिस भुज अहिरावण
सब पर भयलहुँ भारी ॥
दिन मलीन पतित पुकारल
अपन जानि दुख हेरल ।
"रमण " कथा ब्यथा के बुझित हूँ
यौ कपि किया अवडेरल
|| 6 ||
|| हनुमान - आरती ||
आरती आइ अहाँक उतारू , यो अंजनि सूत केसरी नंदन ।
अहाँक ह्र्दय में सत् विराजथि , लखन सिया रघुनंदन
नञि सम्भव गुनगान अहाँके ।
धर्मक ध्वजा सतत फहरेलौ , पापक केलों निकंदन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
गुणग्राम कपि , हे बल कारी '
दुष्ट दलन शुभ मंगल कारी ।
लंका में जा आगि लागैलोहूँ , मरि गेल बीर दसानन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
सिया जी के नैहर , राम जी के सासुर '
उगना - शम्भू गुलाम जतय के , शत -शत अछि अभिनंदन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
कखन आयब कपि , सगुण उचारी ।
"रमण " अहाँ के चरण कमल सँ , धन्य मिथिला के आँगन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
रचैता -
रेवती रमण झा " रमण "
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