शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

kavita--:"राहें मंजिल "

"राहें  मंजिल  "
मंजील की  राहों  में
जब थक -हार  बैठ  जाता  हूँ
तो  मंजिल   कहती है  मुझे ----
    उठो  राही  राह  छोड़ो  नहीं
    बस मैं  करीब हूँ  दो  कदम और  बढ़ो
फिर  उठता  हूँ बढ़ता  हूँ आगे
आँखों में आशाओं के दीप जलाये हुए
जाने मंजिल कब मिले  !!!!!