सोमवार, 18 जुलाई 2016

कविता..राम अल्लाह

आहः !
हे देव !
कतअ छ नुकाएल तूं ?
अपने स्वर्गमे राज करै छ
धरती पर मानवके लहू लुहान करै छ !!
की स्वर्गोमे तोरा आ अल्लाहमे लड़ाई होइत छ ?
हमरा जनैत तूं सब एकै छ
एकहि सूरज एकहि चन्द्रमा
पूरे जगतके इजोत केने छ ।
केयो द्वितियाक चान देख ईद मनाबै छ
केयो चौठक चान देख चौरचन मनाबै छ
केयो गंगाक पानि सँ तोरा नहाबै छ
केयो गंगाक पानि सँ अजान पढै छ
आब अल्लाह राम दूनु अवतरीत होब
अपन बनाएल सुन्नर संसारके बचाब'
नहि त सनकल मनुष नाश क देतअ !!!
:गणेश मैथिल

कविता..जिनगी फरेब थिक

सब झूठ थिक फरेब थिक
मायाक मकरजालमे फसल अछि इंसान
ओझराएल जिनगी फरीछाएब मुश्किल
एतबे उधेर बुनमे कटैत जा रहल अछि जिनगी
भीन्सरे उठि खुरपी ल
बौइनक ओरीयानमे निकैल जाइत छी
नैन्ना भुटका टकटकी लगौने रहैत अछि
बाबू लबनचुस लेने औता
अतेक गांठमे गठीएल अछि जिनगी
जे गांठके खोलहेमे ओझरा जाइत छी
नेन्ना भुटका टकटकी लगौने रहि जाइत अछि
हम बिसैर जाइत छी लायब लबनचुस ।