गुरुवार, 31 मार्च 2016

छंदक फांद तोड़ि ताड़ि
लीख रहल छी कविता आइ ।
नहि जानै छी रचब हम
दोहा, सोरठा आर चौपाई ।।
मनक भाव उकेर रहल छी
बिनु शब्दक मात्रा गनने आइ ।
कहथि कविता कवि सँ--
हम बनी जन-जनक कंठक बाणी
करु एहन कोनो उपाई ।।

शनिवार, 12 मार्च 2016

सुख शान्ति

ताकि रहल छी ओ
जे भेंट रहल अछि नहि ।
जे अछि राखल सम्मुख
तेकर कोनो कद्रे नहि ।।
वन-वन भटैक
रहल अछि मन ।
हेर रहल अछि
सुख शान्तिक क्षण ।।
जँ ठहैर एक पहर
झाँकब अपन अन्तरमन ।
ह्रदयमे बैसल भेटती शान्ति
भ जाएत सुखमय जीवन ।।
:गणेश मैथिल
गुवाहाटी

रविवार, 6 मार्च 2016

मुफ्तखोरी

जनसंख्या नियंत्रण कोना हेतै
जखन मंगनी मे सरकारी अनाज भेटतै ??
काज करबाक कोन काज
जखन राज्य मे छै मुफ्तखोरी राज ??
के चाहत बीपीएल सँ उपर उठी
बिनु काज सरकारी खजाना लूटी ??
आब जनसंख्या बढाब' मे कोन दोष
जखन खुलल छै मीड डे भोज ??
द क माइरतै भत्ते-भत्ता
नेता हथिआबै अपन सत्ता !!
देशक जनता खुश
मंगनीक चाउर मे
भलेही देशक भविष्य
जाउक चुल्हाक अंगोर मे !!
ठीके कहल गेल छै---
" धोतीवाला देहचीर कमाउक
लूंगीवाला बैसल बैसल खाउक !!"
:गणेश मैथिल
गुवाहाटी

मंगलवार, 1 मार्च 2016

"डेग-डेग चलैथ मैथिल
करैत संङगोर सभ जना,
किछु-किछु जँ सब करबै
हेतै काज महान जेना,
चहूँ दिश पसरत लालीमा
चमकत मैथिल सूर्य जेना ।। "