शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

KAVITA--"PAD CHINH"

" पद-चिन्ह "


नै कान तूँ! नै कान तूँ !

एक दिन करबाए नाम तूँ

आई कष्ट काटि रहल छें तूँ

एक दिन करबाए नाम तूँ

नै कान तूँ ! नै कान तूँ !

शिव धनुष तोड़बा लेल

बनि जो आई राम तूँ

परुशरामक क्रोध खाइयो कें

मुदा नै हार मान तूँ

नै कान तूँ ! नै कान तूँ !

सूरज डूबि फेर उगई छै

नदी सूइख फेर भड़ई छै

गाछो मे पतझड़ होइत छै

फेर किएक छें उदास तूँ

नै कान तूँ !नै कान तूँ !

की केयो मनुष कह्तौ तोड़ा

जँ मात्र खा-पी मईर जेबें तूँ ?

जँ जन्म लेलें एहि धरती पर

त किछु नव- पथ करै निर्माण तूँ

नै कान तूँ ! नै कान तूँ !

कह! तोरा-ओकरा मे कुन अन्तर

जँ एकहि पथ कें राही तूँ

जँ छोड़बाक छौ किछु पद-चिन्ह

त चल भीड़-भाड़ सँ बाहर तूँ

नै कान तूँ ! नै कान तूँ !!!!!!

:गणेश कुमार झा "बावरा"

गुवाहाटी