बुधवार, 30 सितंबर 2015

natak..Jagu...drishya 8

नाटक: जागु
दृश्य: आठ, समय: दिन,
स्थान: रास्ताक दृश्य
(गीता स्कूल सँ अबैत..पाछाँ-पाछाँ रहीम सिटी बजाऽ गीताके छेड़ रहल अछि)
रहीम: हे ऐ गीता रानी! सुनै नहि छी !! कने घुरि ताकू ...
गीता:(घुमैत)....सुनै छी ,मुदा, सुनि कऽ बहीड़ बनल छी..हम तोरा सन लुच्चा लफंगाक संग गप नहि करए चाहैत छी...
रहीम:...ए...ह ! तोहर एह पितेनाई हमरा ह्रदयके पीघला दैत अछि...
गीता:...ताँए ने कहै छिऔ हमरा सँ बचि कऽ रहिएँ , कहीं कहियो देह नै पीघैल जाउ...
रहीम:(गीताके हाथ पकड़ैत)...गै छौड़ी !!...बड्ड बजै छें...एखन जँ रफा दफा कऽ देबौ त के काज एतौ(गीता सँ जबरदस्ती करबाक प्रयास)
गीता:(अपनाके छोडेबाक प्रयास करैत)...छोड़...छोड़ !!..बजरखसुआ...सरधुआ..
रहीम: बाजऽ बाजऽ आब...बड्ड फुड़फुराई छलहाँए
(मोहीतक प्रवेश)
मोहीत:(जोर सँ)..रहीम...छोड़िदे गीताके
रहीम:..आ..आ..तुहूँ रसपान कऽ ले
मोहीत:..रहीम...अन्तिम बेर कहै छीऔ...छोड़िदे गीताके..नहि त...
रहीम:...नहि त की ??...मोहीत तूं त हमर मित छें..ताँए त कहै छीऔ बाँटि चुटि खाऽ लेल...या कहिं बिल्टू भाईके जादू त नै चलि गेलौ तोरा पर ??
मोहीत:..हाँ, हम सुधैर गेलौं..बिल्टू भैया हमर सभक जिनगी सुधारि देला आ तोरो कहै छीऔ सुधरिजो
रहीम:...वाह भाई वाह !!!...जातियो गवेलौं आ सुआदो नहि पेलौं..नै..नै आई नै काहिल सँ हमहुँ सुधरि जाएब, मुदा, आई त रसपान करऽ दे(फेर बलजोरी करैत)
(मोहीत गीताके छोड़ा दैत अछि फेर दुनू मे मारा पिटी)
(अकबरके प्रवेश)
अकबर:(दुनूके छोड़ाबैत) किएक तूं सब मारि कऽ रहलाहाँए ?..काहिल तकि तूं दुनू एकहि थारीके चट्टा बट्टा छलहाँए
मोहीत: कक्का , रहीम गीताक संग र्दुव्यहार कऽ रहल छल
अकबर: तोबा! तोबा!! (रहीमके झाँपर मारैत)...तोरा लाज नहि होइत छौ ?..गामक बेटी-बहीन संग र्दुव्यहार क रहल छें..संस्कारहीन भ गेल छें तूं सब..अरे गामक बेटीक रक्षा केनाइ तोहर सभक कर्तव्य थिकहुँ आर तूंही सभ एहि तरहक....(गीताक माथ पर हाथ राखैत)...अरे देख!!..बेटी भ पढि-लिख डाक्टर बनि समाजक सेवा लेल तैयाल अछि आर तूं सब ताश आ शराबमे जिनगी बिता रहल छें...
रहीम:(अकबरक पएर पकरैत)...कक्का , हमरा माफ क दिअ..आईके बाद गामक प्रत्येक बेटी हमर बहीन अछि..
अकबर: माफी हमरा सँ नहि गीता सँ माँग..
रहीम:गीता बहीन हमरा माफ क दिअ !!!
गीता: आहाँ सुधरि जाउ एह आहाँक माफी अछि...कहल गेल छै "जँ भोरक हेराएल साँझमे घर आबि जाए त ओकरा हेराल नहि कहैत छियहि"
रहीम:(मोहीत सँ)..चल भाई..आई सँ हमहुँ बिल्टू भैया सँ पढब
मोहीतः (रहीमके कंठ सँ लगबैत)..हाँ भाई !! हमरा सभके किछु बनि निक काज क देखेबाक अछि
अकबर: अरे , दुनियाँमे किछु असम्भव नहि थिक..जखने जागू तखने भोर..बुझू आहाँ सभ लेल एखने भोर भेला एखने सँ अपन कर्म मे लागि जाउ
गीता:(मोहीत रहीम सँ) भाई, परसों राखी छै आहाँ सब राखी बन्हबाबअ जरूर आएब...हमरा भाए नहि अछि ने !!!!!
मोहीतः गीता बहीन...आहाँ एना जुनि सोचू...की हम सब आहाँक भाए नहि छी??
रहीम: गीता बहीन हम सब जरूर आएब..आहाँके कहियो भाएक खगता नहि होबे देब
अकबरः चलू आब चलै जाई जाउ...
(सभक प्रस्थान)
पर्दा खसैत
दृश्यक समाप्ति