मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

अछीन्जल

की ई सत्य छै
मनुष सँ मनुष छुआई छै ??
अजीबो गरीब नियम
माटि नहि छुआई छै
मुदा, पानि छुआई छै
अशीद्ध नहि छुआई छै
मुदा, शीद्ध छुआई छै
कतेक पैघ विडम्बना छै
सभक शोणीत लाले छै
मुदा, केयो अछूत कहाबै छै
जखन प्रकृति नहि भेद करै छै
बसात ओकरो आँगन  बहै छै
वर्षा ओकरो आँगन  वर्षै छै
तखन के देलकै अधिकार
किएक मनुष सँ मनुष छुआई छै ??
बिनु ओकरा निर्वाहो नहि
खरिहान सँ ल क चिन्मार धरि
मुदा, देहमे  सटिते
जाइत छी छुआ
फेर करैत छी शुद्धीकरण
सौंसे देह छींट अछीन्ञजल
जँ छींट अछीन्ञजल
होइतै देहक शुद्धी
त ओ  लगा अबितै
गंगा मे सौंसे देह डूबकी
भेट जइतै
अछुतक कलंक सँ मुक्ति
फेर नहि बहाबे परितै नोर
फेर नहि करितै समाजके कलोल
मुदा, समाजक खिंचल सीमा मे
आइयो कुंठीत छै ओकर बोली
ई कोना भ सकैत छै
जे मनुष सँ मनुष छुआ सकैत छै ??