सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

नाटकःजागु , दृश्यःनवम

नाटकः जागु
दृश्यःनवम
समयःदुपहरीया
स्थानःआँगन
(लाल काकी सलगी सिबैत आ लक्ष्मी आँगन मे बारहनि लगबैत)
(गीताक प्रवेश)
लक्ष्मीः(गीताके प्रवेश करैत)..एतेक बेर कतअ भ गेलौ ?(गीता बिनु उत्तर देने आगु बढि जाइत अछि) ..की पूछलियो ? जबाब किएक नहि दैत छें??
गीताः माए , रस्ता मे रहीम...
ला.काकीः...हम कहैत छलियहि बेटी जाटीके स्कूल भेजनाई ठीक नञि !! मुदा,नारायणमा हमर बात नञि बुझलक !! सर्मथ बेटी घरे मे  निक लागैत अछि हाट बाट नञि...
लक्ष्मीः(सासु सँ)...ई चुप रहथ ने...
ला .काकीः...हम त चुपे छी बाजत त गउवाँ, जखन ई लुच्चा लफंगा छड़ा सब बेटीके उड़हारि ल जाएत...
लक्ष्मीः(कने क्रोध)...ई की अनाप शनाप बाजि रहल छथि !!! गीता एखन बच्ची अछि, हम पूछि रहल छीयहि ने !! ..बाजू बेटी, की भेलाए आहाँक संग??
गीताः माए , हम स्कूल सँ आबि रहल छलहुँ, रस्ता मे रहीम हमरा संग छेड़खानी केलक, मुदा, एन वक्त पर मोहीत आ अकबर कक्का पहुँच गेला...
लक्ष्मीः... आहाँक संग किछु केलक त नञि???
गीताःनञि! नञि!! ओ त हमरा संग गामक सब बेटीके अपन बहीन मनबाक किरीया खेलकाए । बिल्टू भैया आ अकबर कक्काके प्रयास सँ ओ सब सुधरि गेल ।।
 लक्ष्मीः हे भगवती!! आहाँ अपन आर्शिवाद एहिना बनौने
रहु (गीता सँ) जाउ बेटी , हाथ पएर धो भोजन  क लिअ(गीताक प्रस्थान)
ला. काकीः हम फेर कहै छी , नारायणके कहियौ वर तकबा लेल, सर्मथ बेटीके घर मे रखनाइ ठीक नहि, जतेक जल्दी अपन घर चलि जाए ओतेक निक ...
किसानक भेष मे नारायणक प्रवेश)
नारायणः(जेना आधा गप सुनने होइथ) के आ कत' जा रहल अछि ??
लक्ष्मी: पहिने आहाँ सुस्ता त लिअ तखन गप होएत...
ना.:(तइयो प्रश्न पूछैथ) की माए तीर्थ यात्रा पर जा रहल छथि??
ला. काकीः(कने पिताएल)...हम त नञि मुदा तोरा वर तकबा लेल कतेको तीर्थ यात्रा करे पड़तअ...
 लक्ष्मीः..ई फेर कोन गप ल क बैस गेलैथि , एखन गीताक व्यसे की भेलहिया जे ओकरा लेल वर तकाउक
ना.: त ई गप थिकहि !!---लक्ष्मी , माए ठीके कहि रहल छथि...एखने सँ वर ताकब तखन ने दू चारि वर्षक बाद वर भेटत !!...एत' त दुनू समस्या थिक ने--एक त कैंचा गीनू आ चपलो खिआउ
लक्ष्मीः से त बुझलौं जे मिथीला मे निक वर भेटनाई एतेक सस्ता नञि, मुदा, एखन ओकर व्यसे की थिक--मात्र पन्द्रहम वर्ष !! एखन ओकर खेलबाक-कुदबाक पढबा-लिखबाक व्यस थिक , सासुर बैसबाक नञि !! जे अपनाके निक जँका नञि डेब सकैत अछि ओ सासुरके कोना डेबत  !!!
ला.काकीः एकटा नञि ने चारिटा बिआएल छी ओहो तरे उपरे, साँसों  लेबाक फुर्सत नञि भेटत !!!!
लक्ष्मीः रहे देथुन ! जे भगवती जन्म देलखिनहाँए उहे पार-घाट लगौथिन । हमरा बेटा नहि अछि त कि, बेटीएके पढा-लिखा बेटा लायक बनाएब...
ना.: ...की बेटी विआहके बाद नहि पढि सकैत छथि?? पढे वाली हेती त सासुरो मे पढि लेती..
लक्ष्मीः...हमरो आहाँ पढेलौं ने ?? हमहुँ अपना जमाना मे फस्ट डिवीजन सँ पास भेल रही ।विआह भेला बाद लोक घर-गृहस्थी मे लागि जाइत अछि आ पढाई-लिखाई भन्सा घरक चार पर रखा जाइत अछि!!!!!
ना. अच्छा, ठीक थिक, ओ जतेक पढत हम पढाएब । आब भूख लागल अछि शिघ्र भोजन लगाउ ।  हम स्नान क अबैत छी ।।।।
(पर्दा खसैत अछि)
दृश्य नवम समाप्ति