बुधवार, 16 दिसंबर 2015

फेर सँ चढ़ि रहल अछि
हमरा ऊपर हुनकर प्रेमक रंग,
पाकल केश देख बुझाएल
लैद गेल हमर यौवनक दिन,
बुझाए लागल अछि जे
संसारक भागम भागमे
हेरा गेल अछि कतौ
हमर दूनु ठोरक मुस्की ,
मुदा आई त गजब भ गेलै
हमर ह्रदयमे उठलै यौवनक तरंग
देख हुनकर वाएह मुस्कीत रुप,
फेर सँ हम यौवनक सागरमे
लगाबऽ लगलौंहाँ गोता
ताकि रहल छी यौवनक हीरा-मोती!!
:गणेश मैथिल

सोमवार, 16 नवंबर 2015

रुसल किए छी

"रुसल किए छी "
आहाँ बाजू ने बाजू
रुसल किए छी ?
चुप बैसल आहाँ
नहि निक लागै छी !!
आहाँक मिठगर
कोयलीक सन बोल सुनए लेल
हमर कान अछि व्याकुल
आहाँ बाजू ने बाजू
रुसल किए छी ?
चुप बैसल आहाँ
नहि निक लागै छी !!
आहाँ जँ एना
चुप भऽ बैसब
गाल फुला कऽ
हमरा नहि टोकब
त कोना कऽ
चलत प्रेमक गाड़ी
आहाँ बाजू ने बाजू
रुसल किए छी ?
चुप बैसल आहाँ
नहि निक लागै छी !!
आहाँ जँ मुस्की, त हम घुसकी
आहाँ जँ हँसी, त हम फँसी
जँ आहाँ नहि बाजी
त हम धप खसी
आहाँ बाजू ने बाजू
रुसल किए छी ?
चुप बैसल आहाँ
नहि निक लागै छी !!
अहीं त छी हमर लजबन्ती
अहीं पर प्राण हमर न्यौछावर
बिनु आहाँ हमर जिनगी
जेना--
सुर बिनु संगीत
सुगन्ध बिनु फुल
आहाँ बाजू ने बाजू
रुसल किए छी ?
चुप बैसल आहाँ
नहि निक लागै छी !!
:©गणेश मैथिल

रविवार, 15 नवंबर 2015

निर्मोही पिया"

"निर्मोही पिया"
सखी हेऽ
हमरा नहि आई तूं रोकिहऽ
जँ पिया नहि आई एता
त हम खाऽ लेब माहुर !
पिया बड्ड निर्मोही निर्दयी भेलाऽ
हमरा प्रेमक पाठ  पढा कऽ
अपने ओरीया देश चलि गेलाऽ
ओ ओरीया देश जा कऽ
कोनो सौतनीक फेराऽ मे पड़ि
हमरा निछौह बिसैर गेलाऽ
हमरा एतऽ बिरहाक आगिमे
जरै लेल छोड़ि गेलाऽ !
सखी हेऽ
की कहिअऽ व्यथा अपन
किछु नहि सुझैया
किछु नहि फुराइया
किछु नहि निक लगैया !
सखी हेऽ
फागुनक बसात मन जरबैया
सावनक बरशात देह जरबैया
पुशक जाऽर थड़-थड़ कपबैया
अहुरीया काटि हम राति बितबै छी
बिरहनि बनि हम दिन बितबै छी
सदिखन हुनके हम बाट जोहैत छी
हुनक योगीन बनि हम
नित्य नब आश बुनै छी !
सखी हेऽ
तूंही कहऽ
कतेक दिन हम धिरज राखू ?
कतेक दिन हम बिरहाक आगिमे
भुस्सा जेना नहुँ नहुँ जरू ??
:©गणेश मैथिल
14/10/2003

शनिवार, 14 नवंबर 2015

भूत

भूत
रौ भूत
आब तू किएक छें परेशान ?
बड्ड मन लागल छलौं
अपन घर छोड़ि
मनुखक्क घरमे बास करबाक !
की तोरा बुझल नहि छलौं ?
तूं त मात्र शोणीत चुसैत छें
मुदा, ई ईंटके देवालमे रहे वाला मनुख
मांस तकि डकैर जाइत छै !!

गीत

माए:---
रौ बौआ
कोना क' बिसैर गेलहीन
अपन आँगनक दुरखा
देखहीन तोरा लेल
कानि रहल छौ अँगना
रौ बौआ
कोना क' बिसैर गेलहीन
अपन आँगनक दुरखा !!
दू पाई तूं,  की कमेला
गाम घर, सब गमेला
बाट जोहै छौ अँगना
रौ बौआ
कोना क' बिसैर गेलहीन
अपन आँगनक दुरखा !!
बेटा:---
गै माए
पेटक खातीर
छोड़लौं गाम घर
पेट लागल अछि पोसीया
गै माए
कोना क' कहियो
अपन मनक दुखरा !!
मालीक अछि बड्ड कसैया
दिन राति काज कराबैया
गाम आबे लेल छी हम आतुल
मुदा, छुट्टी नहि दैया
गै माए
कोना क' कहियो
अपन मनक दुखरा !!
गै माए
जँ निके-नाके रहबौ
अगिला बरख, जरूरे एबौ
नहि कनिहाँए तूं शपत हमर
गै माए
कोना क' कहियो
अपन मनक दुखरा !!
:©गणेश मैथिल

शनिवार, 7 नवंबर 2015

kavita...mithilesh

शांत ! शांत !! शांत !!!
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
आहाँक तमशाएब अछि उचित
मुदा, राखू कनेक धैर्य
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
शांत ! शांत !! शांत !!!
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
आहाँ सन-सन चारि कोटि
माए मिथिलाके मिथिलेश
मुदा, सभ छथि सुतल
कुम्भकर्णक घोर निन्नमे
ढोल नगारा बजा जगाबे पड़त
मुइल ह्रदयके झकझोरे पड़त
करे पड़त जतन विशेष
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
शांत ! शांत !! शांत !!!
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
बैर बैमन्स्य टाँग खींचब
बड़का-बड़का गप हाँकब
काज पड़ला पर मुँह फेड़ब
रहिगेल मैथिलक गुण अवशेष
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
शांत ! शांत !! शांत !!!
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
झुंडक झुंड छोड़ि मिथिला
जाइथ मैथिलपुत भदेश
संगहि ओतहि छोड़ि आबैथ
अपन संस्कृति-भाषा-भेष
देख ई दुर्दिन दशा
माए मिथिलाके  होइन कलेश
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
शांत ! शांत !! शांत !!!
हे मैथिलपुत मिथिलेश !
माए मिथिला करैथ आह्वान
हे चारि कोटि मैथिलपुत मिथिलेश
क्रान्तिक मशाल अहीं लेसू
बनि क्रान्ति दूत
हे चारि कोटि मैथिलपुत मिथिलेश !!!
:©गणेश मैथिल

शनिवार, 31 अक्टूबर 2015

kavita...हम नेन्ना रहितौं

"हम नेन्ना रहितौं"
काश! हम नेन्ना रहितौं
सदैव निश्चल निर्मल कोमल रहितौं !!!
अपन आनक भेद नहि उपजैत
माए बाबू कक्का काकी
सभक हम दुलारु रहितौं
काश! हम नेन्ना रहितौं
सदैव निश्चल निर्मल कोमल रहितौं !!!
नहि जनितौं कोनो सीमा रेखा
नन्हिएटा पएर ल घुमि अबितौं
टोल परोसक दुरा-दरवजा
अपन मनक राजा रहितौं
काश! हम नेन्ना रहितौं
सदैव निश्चल निर्मल कोमल रहितौं !!!
नहि रहैत पेटक चिंता
नहि डेराबैत बेरोजगारीक भूत
रणे बणे नहि बौअइतौं
अपने गाम धेने रहितौं
काश! हम नेन्ना रहितौं
सदैव निश्चल निर्मल कोमल रहितौं !!
:गणेश मैथिल

बुधवार, 28 अक्टूबर 2015

geet...chhathi maike

उगियो यौ
सुरुजदेव जल्दी जल्दी
हाथ नारीयल लेने
पानि तरमे ठाड़ छथि
घाटे घाटे सब व्रतधारी
उगियो यौ
सुरुजदेव जल्दी जल्दी...
रंग-बिरंगक पकवान सँ
अछि डाला साजल
अर्घ देबअ लेल
छथि आतुर सब व्रतधारी
उगियो यौ
सुरुजदेव जल्दी जल्दी....
हे सुरुजदेव
चारू दिश पसरै खुशहाली
ज्ञानक ज्योति जरै चारू दिश
कल जोड़ि करैथ विनती
सब व्रतधारी
उगियो यौ
सुरुजदेव जल्दी जल्दी...
आहाँक महीमा देव
अछि बड्ड भारी
मनवांछीत फल पाबैथ
सब व्रतधारी
उगियो यौ
सुरुजदेव जल्दी जल्दी....

उठ रे बौआ"

"उठ रे बौआ"
उठ रे बौआ भेलै भोर
सगरो दुनियाँ करै कलोल
कहियाधरि भांग खाए
रहबाए तूं भकुआएल ?
देखहीं सगरो दुनियाँ
आइ छै अगुआएल
आब नहि छौ भड़ल
बाबाक बड़का भखाड़ी
उसड़ पड़ल छौ
खेत-खरीहान आँगन-बाड़ी
ताशक तमाशा देखने
की पेट भड़तौ ?
बीपीएलक चाउर गहुम खेने
की जिनगी कटतौ ?
चौक चौराहा पर भाषण झाड़ने
मुँहमे जरदा पान गलौठने
की बनबे नेता ?
दियादी झगड़ा केने
एक दोसराके खसेने
की भेटतौ तमगा ?
रे अभागा
कने अपन इतिहास भूगोल त पढ़
जानि अपन पहचानि अपन शक्ति
सगरो दुनियाँमे ताल त ठोक
उठ रे बौआ भेलै भोर
सगरो दुनियाँ करै कलोल !!!!"
:गणेश मैथिल

रविवार, 25 अक्टूबर 2015

कविताः देवक लीलि

पाथर बनल छै आँखि ओकर
एकहि दिश छै लगेने टकटकी
नहि हर्षमे, नहि विषादमे
ओ बहाबैत छै नोर
पूर्वा-पछवा बहै
चाहे बहै कोनो बसात
ओकरा पर नहि होइछै
कोनो बसातक असरि
ओ पहिने एहन नहि छलहि
हरदम फूल जेना मुस्काइत छलहि
गाबैत छलहि नाचैत छलहि
अपन आँचर सँ स्नेह उड़ाबैत छलहि
मुदा एक दिन डोललै हिमालय
कराहि उठलै धरती
तर तर फाटै लगलै
समाए लगलै
लोक-बेद घर-द्वार धरती
खिलखिलाइत फूल मुर्झा गेलहि
देखिते देखिते आँखिक सोझा
उजरि गेलहि ओकर संसार
मुदा बाँचि गेलहि ओ अभागीन
देखअ लेल देवक अभिषाप
बड्ड देवता पितर पूजैत छलहि
सदिखन पाथर पर माथ रगड़ैत छलहि
मुदा हाय रे देवक लीला
आइ ओ स्वयं पाथरक बूत बनल छलहि !!!!!!!
:गणेश मैथिल, गुवाहाटी

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2015

kavita...

इ की हो रहल हइ देशमे
स्थिर सरकार हो रहल हइ अस्थिर
सभे ठार हो रहल हइ विरोध मे
तिरंगा फहराए लागल रहलै ह'
देश आ विदेश मे
मुदा चन्द राजनैतिक रावण नेतबा
अपन राजनीतिक रोटी पकबे खातीर
क' रहलै ह' बदनाम
देशक नाम देश आ विदेशमे !!
अइ देशक जनताके
न चाही विकाश
न चाही काम-धन्धा
खैरातमे चाही खाना पानी
चाहे गद्दीधारी लूटौ देशक खजाना !!
गोलबन्द भ रहल हइ आजुक जयचन्द
असगर कर्मयुद्धमे फँसल हइ पृथ्वीराज
फेर लागल हइ दाँव पर
इज्जत माइ भारतीके
हे हिन्द मानव
करहो फैसला
केकरा जीतेबहो
पृथ्वीराज वा मोहम्मद गोरीके ???

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

कतौ बिला गेल शांति
बात बात पर उन्माद
चारु दिश अछि पसरल
जाति-पाति धर्मक जाल ।
खत्म भ गेल सहनशीलता
भ गेल खत्म स्नेह-व्यवहार
बुढिया-फुसि बात मे
लोक फुकि  दैत अछि
एक-दोसरक घर ।

रविवार, 18 अक्टूबर 2015

नाटकःजागु 10

नाटकःजागु
दृश्यः दश
समयः भोर
स्थानःबिल्टूक घरक दृश्य
(स्टेज पर बिल्टू घर मे पूजा पर बैसल अछि)
विष्णु देवः(नेप्थय सँ) बिल्टू! बिल्टू!!(हाक दैत)
बिल्टू: के ???
वि0दे0: हम !!!
बि0:(धरफराइत उठैत) भाई जी !! याह एलौं...(विष्णु देवक प्रवेश, बिल्टू पएर छू गोर लगैत)
वि0दे0:'आयुष्यमान भवः', 'यसस्वी भवः'
बिल्टूः (कुर्सी दैत) आउ बैसू
वि0दे0:(बैसत) हम भोरे भोर मधुर खेबाक लेल एलहुँवा । आईके अखबार पढलहकाए ??
बिल्टूः की भेलहिया ? की रामनारायण बाबू चुनाव जीत गेला ??
वि0दे0: राम बाबू त जीतबे करता, मुदा, आई हमर गाम जीतलाए ! हमर गामक नाम अखबारक मुख्य पृष्ठ पर छपल अछि !! (गोर्वान्वित होइत)
बिल्टूः से किएक ?
वि0द0: ओ आहाँक कारण...
बिल्टूः (आशचर्यचकित भाव)...हमरा कारण ??? भाई जी, हम गप नहि बुझलौं !!!!
वि0दे0:(अखबार देखबैत)..हौ तूं "कलेक्टर" बनि गेलअ, कलेक्टर !! एहि गामक पहिल कलेक्टर , ओहो भारत मे प्रथम स्थान ....
बिल्टूः(खुशी सँ)...की कहलौं, हम कलेक्टर बनि गेलौं !! हे भगवान ! आहाँक कोटि कोटि धन्यवाद !! आइ आहाँ हमर भक्ति, आराधना आ विश्वाशक फल देलौं ।(माए बाबूके फोटो लंग जा प्रणाम करैत) भाई जी, आइ हमर माए बाबू बड्ड प्रसन्न हेता' । हमर ई सफलता हुनके लोकनिक आर्शिवादक फल अछि ।
वि0द0: मात्र तोरे माए- बाबू नहि, आइ एहि पावैन अवसर पर पूरा समाज हर्षित अछि ! आइ ई समाज तोरा पर गर्व महसूस क रहल अछि !! तोहर ई सफलता सिद्ध क रहल अछि कि जँ आत्मविश्वाश, हौसला आ किछु क गुजरबाक इच्छा हुए त कोनो वस्तुक प्राप्ति असम्भव नहि । तूं समाज लेल एक आदर्श छ ।।
बिल्टूः भाई जी, हमर एहि सफलताक पाछाँ एहि समाज आ आहाँ लोकनिक बड्ड पैघ हाथ अछि । माए-बाबूक मुइला उपरान्त हम हिआउ हारि गेल रही, मुदा, ई समाज हमरा बड्ड सहयोग केलक । हम एहि समाजके सदा त्रृणी रहब ।
वि0दे0: बस...!! जिनगी मे सदैव याह गप मुन राखब ! समाज सँ पैघ केयो नहि होइत अछि । चाहे कतबो पैघ हाकिम बनि जाइ, मुदा, समाजके कहियो नहि बिसरब । सदा हमर एहि गपके मुन राखब-----
"जेना कृषक वर्षाके बाट तकैया, तहिना समाज सदैव प्रतिभावान पुतके बाट जोहैया"...
बिल्टूः भाई जी. हम वचन दैत छी--हम सदैव समाजके प्रति सजग, संवेदनशील आ कर्त्तव्यनिष्ठ रहबाक प्रयास करब ।।
वि0दे0: हमरा तोरा सँ याह उम्मिद अछि  !!
बिल्टूः भाई जी, हम अपन कमाईके किछु हिस्सा सदैव ' सम्पूर्ण शिक्षा अभियानके' दैत रहब , आइ सँ एकर संचालनक भार हम आहाँके सोपि रहल छी, हमरा त असली सफलता ओहि दिन भेटत जहिया गामक एकटा व्यक्ति अशिक्षित नहि रहत !!
वि0दे0: हम ई भार सहर्ष स्वीकार करैत छी आ प्रयास करब कि हम आहाँक सपनाके पूरा करी ।..आब चलू समाजक लोक आहाँक अभिनन्दन लेल बेकल छैथ
(प्रस्थान, पटाक्षेप, दोसर पर्दा पर टेबुल कुर्सी लागल आ दस बिस लोक फुल माला ल बैसल, विष्णुदेवक संग बिल्टूक प्रवेश, अभिनन्दन कार्यक्रम होइत अछि)
बिल्टूः (आँखि सँ खुशीक नोर पोछैत)...समस्त गामवाशीके हमर प्रणाम !! आहाँ  लोकनिक असीम स्नेह आ सहयोगक बलबूते आइ हम ई सफलता प्राप्त क सकलौं ! एहि हेतु हम सदैव आहाँ सभक त्रृणी रहब ! हम एकहिटा गप कहब--प्रत्येक पाथर हीरा अछि, बस, ओकरा तरसबाक आ परखबाक जरूरत अछि । गाम मे कतेको धिया पुता अछि जेकरा अन्दर ज्ञान, विज्ञाण आ कला कुटि कुटि क भड़ल अछि, मुदा, बेकार पड़ल अछि । जतेक समय हम अधलाह काज मे लगबैत छी, जँ ओतेक समय, बल आ बुद्धि निक काज मे लगाबी त अपना संग समाज आ देश दुनूक विकाश होएत ।(सभ ताली पीटैत अछि)
पुनः सभ गोटेके हमर प्रणाम !!!!
पर्दा खसैत अछि
दृश्य दशम समाप्ति

नाटकः जागु 12

नाटकः जागु
दृश्यः बारह(अन्तिम)
समयः दुपहरिया
(दश वर्ष बाद गीता डाॅक्टर बनि गाम अबैत छथि,)
(नारायण भोजन क रहल छथि आ लक्ष्मी पंखा हौंक रहल छथिन)
गीता:(नेपथ्य सँ) माए ! माए !!
ल0:(अकचकाइत) बुझि पड़ैया गीता एली ! (उठि दरवजा दिश जाइत)
गीताः(प्रवेश, माएके पएर छू प्रणाम) गोर लगैत छी
ल0: खूब निके रहू ! (गीताके करेजा सँ लगबैत) निके छी ने ? आहाँक देखबाक लेल आँखि तरैस गेल छल ।
गीताः माए, आहाँ सबके देखबाक लेल हमहुँ बड्ड बेकल छलौं ! हमरो निक नञि लागैत छल ! मुदा, किछु पाबे लेल किछु गवाँबे पड़ै छै ! माए, आब हम सदैव अहीं लंग रहब, कारण, हमर पढाई पूर्ण भ गेल, हम डाॅक्टर बनि गेलौं
ल0:...की कहलौं !!! आहाँ डाॅक्टर बनि गेलौं !!!! हे भगवती ! आहाँक कोटि कोटि धन्यवाद!!
ना0:(भोजन पर सँ उठि)..हे ऐ गीता माए ! अहीं सबटा स्नेह न्यौछावर करब बेटी पर , की हमरो ओकर मुँह देखअ देब !! कने देखी डाॅक्टर बनि हमर बेटी केहन लागैत छथि !! (गीता पएर छू प्रणाम करैत)..भगवान सदैव आहाँके खुश आ कामयाब राखैथ । (गीताके करेजा सँ लगबैत)...गीता! आहाँ त एकदम ओहने छी कनेको बदलाव नहि, वाएह मैथिल संस्कार आ संस्कृति मे ढलल !! हमरा त होइत छल आहाँ अँग्रेजीएन डाॅक्टराइन बनि गेल होएब
गीताः बाबूजी, ई कतअ लिखल अछि जे डाॅक्टर आ इंजीनियर बनबा लेल अपन संस्कार आ संस्कृतिके छोड़अ परत !! हमर डाॅक्टर बननाइ आहाँ सबहक देल संस्कारक प्रतिफल थिक !! हमरा त गौरव अछि जे हम मिथिलाके बेटी छी आ जन्म-जन्मान्तर एहि धरती पर जन्म लैत रही !! हम त एकहिटा गप बुझै छी--
"हम छोड़ब नहि अपन चालि
हम पकड़ब नहि दोसर डारि
किएक त
हम छी मिथिलावाशी !!
कम्प्युटर हम सीखब
चानो पर जाएब
जाएब हम सूर्यो पर
मुदा बिसरब नहि अपन वाणी
किएक त
हम छी मिथिलावाशी !!!
 ना0:(गौर्वान्वित होइत) वाह बेटी वाह !! आइ हमर ह्रदय प्रफुल्लित अछि , हमरा अपना पर गौरव अछि जे हम आहाँक पिता छी !!!!
गीताः माए, बौआ सबके आ दाइके नहि देखैत छी !!
ल0: बौआ सब त स्कूल गेल अछि आ दाइ घर मे बिमार पड़ल छथि , सदिखन गीता गीता रट्ट लगौने रहैत छथि
गीताःमाए, आब हम आबि गेलौं ने , दाइ बिल्कुल ठीक भ जेतीह (कहैत घर मे प्रवेश, लाल काकी ओछाइन पर बिमार पड़ल छथि)..दाइ गोर लगैत छी !!
ला0का0:(उकासी करैत उठि बैसैत छथि)...गीता(थड़थड़ाएल आवाज) कखन एलौं ? खूब निके रहू, की समाचार ?(कहैत छाती सँ लगा लैत छथिन)..हम त आब जा रहल छी
गीता:..नञि दाइ !!! आहाँके किछु नञि होएत , हम छी ने, हम अपना हाथ सँ आहाँके इलाज करब
ला0का0: आहाँ एतअ थोड़े ने रहब !! आहाँक विआह होएत, सासुर जाएब आ शहर मे रहि डाॅक्टरी करब
गीताः दाइ, हम डाॅक्टरी पढाई शहर मे रहबाक लेल नहि पढलौंहाँ, हमर बचपनक सपना अछि डाॅक्टर बनि गाम मे अस्पताल खोलनाइ । शहर मे त बहुतो पैघ पैघ डाॅक्टर अछि, मुदा गाम मे नञि, जाहि कारण आइ तकि नञि जानि कतेको नेन्ना अकाल कालके गाल मे समा गेल; कतेकों  माए प्रसूतीके दौरान स्वर्ग सीधारि गेली
ला0का0: मुदा अस्पताल लेल त बहुतो टाका चाही से कतअ सँ आओत ??
गीताः दाइ, हम समाजक लोक सँ कहबैन--श्राद्ध आ विआह मे अनेरों जे टाका बहाबैत छथि ओहि टाकाके अस्पताल आ स्कूल बनाबअ मे लगाबौथ, जाहि सँ  समाज निरोइग आ शिक्षीत होएत !!!
विष्णुदेवः(नेपथ्य सँ)नारायण भाई छी यौ ?? सुनलौंहाँ गीता एलीहाए !!
ना0:(नेपथ्य सँ) विष्णुदेव भाई !हाँ गीता एलीहाए !! आऊ आऊ
(ना0,  वि0देव आ लक्ष्मीक प्रवेश)
(गीता वि0देवके पएर छू प्रणाम करैत)
वि0दे0:"यसस्वी भवः" देखलौं लाल काकी, हमर गप कतेक सत्य भेल ! आइ आहाँक पोती डाॅक्टर बनि गामक नाम रौशन केलीहाए । जँ ओहि दिन गीताके स्कूल नहि भेजतीयहि  त आइ ई समाज एक होनहार, बुद्धिमान आ परोपकारी संतानके प्राप्त नहि क सकैत ।।
ला0का0: से त ठीक कहै छी , ओहि दिन हमर मति मइर गेल रहाए जे गीताके स्कूल जाए सँ रोकैत रही । मुदा आइ हम जानि गेलौं जे बेटा बेटी मे कोनो अन्तर नहि छै । बेटा हो वा बेटी बस सपूत हेबाक चाही ।
गीताः कक्का , आहाँक हम सदैव आभारी रहब, आहाँक सहयोगक बलबूते आइ हम डाॅक्टर बनलौं
ना0: विष्णुदेव भाई, आब गीता लेल एकटा लड़का तकियो
(गीता लजा जाइत छथि)
वि0दे0: जुनि चिन्ता करू नारायण भाई, हमर गीता लेल त एक सँ राजकुमारके लाइन लाइग जेतै
ल0: से किएक नहि....हमर बेटी छइथे एतेक गुनवन्ती !!!!!!!!
(सब केयो ठहाका लगबैत )
(पर्दा खसैत अछि आ नाटकक समाप्ति)
लेखकक आह्वानः
अन्ततः हम एतबा कहब----
"बेटीके जुनि बुझू अभिशाप
बेटीए छथि सृष्टिक आधार
अपन मिथ्या प्रदर्शनक कारण
नहि छीनियौ ओकरा सँ
ओकर जीवक जन्मसीद्ध अधिकार !!
हटा फेंकू मिथ्या अहंग
बेटी नहि छथि बौक बहीड़ अपंग
बढ़े दियौ ओकरा आगाँ
हर एक डेग पर दियौ संग
सीताके बहीन अछि ओ
बनू पिता जनक समान
बना ओकरा घरक गुड़िया
नहि करियौ
ओकर इच्छा आकाँक्षाके बलिदान !!"
हम एतबा कहब---
जँ उचित बुझि पड़ाए
त गप पर देब ध्यान
तहने हम बुझब
हमर मेहनतक भेटल परिणाम !!
आब आहाँ लोकनिके
'गणेशक' शत् शत् प्रणाम !!
जोर सँ कहू एक बेर
हमर मिथिला महान !!!!!!

शनिवार, 17 अक्टूबर 2015

नाटकः जागौ दृश्त 11

नाटक: जागु
दृश्यः ग्यारह
समयः दोपहर
स्थानः आँगन
(लक्ष्मी चाउर फटकैत)
नारायणः (प्रवेश करैत) हे ऐ, सुनै छी !! कतअ गेलौं ?
लक्ष्मीः की भेल ? एतहि त छी
ना0: एकटा गप बुझलिए ?
ल0: से की ?
ना0; बिल्टू कलेक्टर बनि गेलाह
ल0: कोन बिल्टू ? सरसों वाली काकीके बेटा ?
ना0: नञि..नञि ! बिहारी वाली भौजीके बेटा ।
ल0: से के कहलक ?
ना0: चौक पर हुनकर अभिनन्दन समारोह भेलहिए । आर बुझैत छीयहि ? पूरे भारत मे टाॅप केलैथा ।
ल0: ई त बड्ड हर्षक गप सुनेलौं !! बिहारीवाली बहीन बड्ड दुःख काटि बेटाके पढेली, मुदा, सुखक घड़ी नहि देख सकली !!
ना0: कने टी0भी0 खोलीयौने, समाचार कहैत हेतहि , अपन गामके नाम सेहो देखाओत
ल0: की आहाँके बुझल नहि अछि पन्द्रह दिन सँ गाम मे बिजली नहि छै !! आ नहि जानि कहिया तकि ई हाल रहत !!
ना0: इहो बिहार सरकार बुड़िएले अछि !
ल0: ताँए ने कहैत छी--बाहर कमाए जाउ जतअ चौबीसो घंटा बिजली रहैत छै...गामक उब भड़ल जिनगी सँ मुन उबि गेल अछि...
ना0: हे !केहन गप कहैत छी !!! गाम सन प्रेम आ शान्ति भड़ल जिनगी शहर मे कतअ भेटत..शहर मे लोक भौतिक सुख सुविधा त प्राप्त करैया, मुदा प्रकृतिक आनन्द आ आत्मिक सुख नहि भेट पबैत छै !! ....हे चिन्ता जुनि करू , बिल्टू कलेक्टर बनि गेलाह आब गामक काया पलैट जाएत

ल0: से के जनैत अछि जे बिल्टू गाम लेल काज करताह ??..प्रायः देखल जाइत अछि जे कोनो व्यक्ति पैघ पद पबैत अपन जननी, जन्मभूमि आ जनलोकके बिसैर जाइत अछि !!
ना0: हे ! एना जुनि कहू !! सब केओ एकहि रंगके नञि ने होइत अछि ! हम बिल्टूके नाञिन्हएटा सँ जनैत छी , ओ स्वभावत् मातृभूमि स्नेही छैथ आ सेवा भाव कुटि कुटि क भड़ल छैन ।।
ल0: तखन त हुनका सँ आश काएल जाए
ना0:आ बुझै छी ?---बिल्टू गरीब होइतो कहियो टाका (रूपया)के बेसी महत्व नहि देलक । ओ बाँटि चुटि खाए मे विश्वाश रखैत अछि आ दोसरक कल्याण मे अपन कल्याण बुझैत अछि....आब अहीं कहू-- एहन लोक सँ त गामक विकाशक अपेक्षा कऐ सकैत छी !!!
ल0: भगवती हुनकर याह सुधि-बुधि बनौने रहथुन जाहि सँ गामक दुःख दुर हौक
ना0: जनै छी ! हर माए-बापके अपना धिया-पुता सँ अपेक्षा रहैत छनि जे हुनक धिया-पुता पैघ पद पर बैसैन, मुदा केओ ई शिक्षा नहि दैत छथिन कि बौआ पैघ भ  समाजके नहि बिसरब ।।....हे जनै छी ??
ल0: की ?
ना0: हमरा मन मे एकटा विचार अछि....अपन गीता एहिबेर आठवाँ मे छैथ, स्त्रीगण ओकर विआह लेल कहैत हेती, मुदा गीरह बान्हि लिअ कि जावत गीता डाॅक्टर नहि बनती हम हुनकर विआह नहि करेबैन..
ल0: ई त बड्ड निक विचार अछि, लोकक कहला सँ की हेतै, गीता हमर बेटी अछि, हमर  सब शख-मनोरथ त ओकरे सब सँ पूरा होएत ने !!
....मुदा डाॅक्टर बनेबा लेल त बेसी टका चाही, कतअ सँ आओत एतेक टका ?
ना0: हे आहाँ टका लेल जुनि चिन्तित हौ, हम आर मेहनत करब, खेत गहना सब बेच देब, मुदा अपन बेटीके डाॅक्टर बना क रहब !!..गामक लोक बड्ड कष्ट कटलकाए ! !! अपन बेटी डाॅक्टर बनि गाम मे अस्पताल खोलतीह आ गामक लोकके सेवा करतीह ...
ल0: हम आहाँक हर एक डेग पर संग छी । दुनू गोटे मिल अपन बेटीके डाॅक्टर बना समाजके समर्पित क देब, कारण.  होनहार पुत एकके नञि समाजक पुत होइत अछि
ना0: ठीक कहलौं, हमर बेटी समाजक बेटी !!!!!!!!!!!!!
(पर्दा खसैत, दृश्य ग्यारह समाप्त)

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2015

अछीन्जल

की ई सत्य छै
मनुष सँ मनुष छुआई छै ??
अजीबो गरीब नियम
माटि नहि छुआई छै
मुदा, पानि छुआई छै
अशीद्ध नहि छुआई छै
मुदा, शीद्ध छुआई छै
कतेक पैघ विडम्बना छै
सभक शोणीत लाले छै
मुदा, केयो अछूत कहाबै छै
जखन प्रकृति नहि भेद करै छै
बसात ओकरो आँगन  बहै छै
वर्षा ओकरो आँगन  वर्षै छै
तखन के देलकै अधिकार
किएक मनुष सँ मनुष छुआई छै ??
बिनु ओकरा निर्वाहो नहि
खरिहान सँ ल क चिन्मार धरि
मुदा, देहमे  सटिते
जाइत छी छुआ
फेर करैत छी शुद्धीकरण
सौंसे देह छींट अछीन्ञजल
जँ छींट अछीन्ञजल
होइतै देहक शुद्धी
त ओ  लगा अबितै
गंगा मे सौंसे देह डूबकी
भेट जइतै
अछुतक कलंक सँ मुक्ति
फेर नहि बहाबे परितै नोर
फेर नहि करितै समाजके कलोल
मुदा, समाजक खिंचल सीमा मे
आइयो कुंठीत छै ओकर बोली
ई कोना भ सकैत छै
जे मनुष सँ मनुष छुआ सकैत छै ??

आन्दोलन

कहब त भक द लागतः
मिथिला राज्य आन्दोलन  मजगूत नहि हेबाक कारण छै ---------।
प्राय: कोनो राजनीतिक परीवर्तन क्रान्ति अर्थात आन्दोलन सँ होइत छै,
पहिने जनताके जगा क उद्वेलित काएल जाइत छै,
जखन जनताके बुझा जाइत छै जे ओकल हकके लड़ाई छै
तखन ओ जनता तन मन धन सँ आन्दोलन मे समर्पित भ जाइत छै आ फेर शासक पर दबाब बना राजनीति काएल जाइत छै
मुदा, मिथिला आन्दोलन मे आन्दोलनकारी पहिने राजनीति करै छैथ आ फेर करता आन्दोलन ।।।।
ई मिथिला आन्दोलन मे नव प्रयोग भ रहल अछि....तांए आन्दोलन आँगन सँ दलानो तकि नहि पहुँचल...
किछु नवतुरिया एहि आन्दोलनके आन्दोलित करबाक चेष्टा केलक, मुदा, मिथिलाके नाम पर राजनीति करे वाला सभके नहि सोहेलैन आ कुचक्रक चक्र चलि आन्दोलनके खन्डित क देला ।।
आइ 'आप' क जन्म आन्दोलन सँ भेलै, आइ हार्दिक पटेल लाखों लोक के उद्वेलित क आन्दोलन ठार क देलक, आब ओ जखन चाहे तखन राजनीतिक पार्टी बना राजनीति क सकैया...
तांए, हे मिथिलावादी पहिने जमीन पर मिथिला मे आउ लोकके उद्वेलित करू फेर देखियो क्रान्ति...
क्रान्ति... क्रान्ति... क्रान्ति...
क्रान्ति... क्रान्ति... क्रान्ति...

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015

वन्दना

"वन्दना"
हे जगदम्ब जगत जननी माँ
आहाँक शरण चरण हम एलौं
आहाँ एतेक सुन्नर जगत बनेलौं
ओहि जगत मे हमरा लेलौं
ताहि हेतु हे जगत जननी माँ
आहाँक कोटि कोटि वन्दन ।।
माँगि रहल छी एतबा माँ
सदा सदाचारी बनल रही
ज्ञान, विवेक, बुद्धि, बल सँ
सदा जगतके कल्याण करी ।।
:गणेश मैथिल:

सोमवार, 5 अक्टूबर 2015

नाटकःजागु , दृश्यःनवम

नाटकः जागु
दृश्यःनवम
समयःदुपहरीया
स्थानःआँगन
(लाल काकी सलगी सिबैत आ लक्ष्मी आँगन मे बारहनि लगबैत)
(गीताक प्रवेश)
लक्ष्मीः(गीताके प्रवेश करैत)..एतेक बेर कतअ भ गेलौ ?(गीता बिनु उत्तर देने आगु बढि जाइत अछि) ..की पूछलियो ? जबाब किएक नहि दैत छें??
गीताः माए , रस्ता मे रहीम...
ला.काकीः...हम कहैत छलियहि बेटी जाटीके स्कूल भेजनाई ठीक नञि !! मुदा,नारायणमा हमर बात नञि बुझलक !! सर्मथ बेटी घरे मे  निक लागैत अछि हाट बाट नञि...
लक्ष्मीः(सासु सँ)...ई चुप रहथ ने...
ला .काकीः...हम त चुपे छी बाजत त गउवाँ, जखन ई लुच्चा लफंगा छड़ा सब बेटीके उड़हारि ल जाएत...
लक्ष्मीः(कने क्रोध)...ई की अनाप शनाप बाजि रहल छथि !!! गीता एखन बच्ची अछि, हम पूछि रहल छीयहि ने !! ..बाजू बेटी, की भेलाए आहाँक संग??
गीताः माए , हम स्कूल सँ आबि रहल छलहुँ, रस्ता मे रहीम हमरा संग छेड़खानी केलक, मुदा, एन वक्त पर मोहीत आ अकबर कक्का पहुँच गेला...
लक्ष्मीः... आहाँक संग किछु केलक त नञि???
गीताःनञि! नञि!! ओ त हमरा संग गामक सब बेटीके अपन बहीन मनबाक किरीया खेलकाए । बिल्टू भैया आ अकबर कक्काके प्रयास सँ ओ सब सुधरि गेल ।।
 लक्ष्मीः हे भगवती!! आहाँ अपन आर्शिवाद एहिना बनौने
रहु (गीता सँ) जाउ बेटी , हाथ पएर धो भोजन  क लिअ(गीताक प्रस्थान)
ला. काकीः हम फेर कहै छी , नारायणके कहियौ वर तकबा लेल, सर्मथ बेटीके घर मे रखनाइ ठीक नहि, जतेक जल्दी अपन घर चलि जाए ओतेक निक ...
किसानक भेष मे नारायणक प्रवेश)
नारायणः(जेना आधा गप सुनने होइथ) के आ कत' जा रहल अछि ??
लक्ष्मी: पहिने आहाँ सुस्ता त लिअ तखन गप होएत...
ना.:(तइयो प्रश्न पूछैथ) की माए तीर्थ यात्रा पर जा रहल छथि??
ला. काकीः(कने पिताएल)...हम त नञि मुदा तोरा वर तकबा लेल कतेको तीर्थ यात्रा करे पड़तअ...
 लक्ष्मीः..ई फेर कोन गप ल क बैस गेलैथि , एखन गीताक व्यसे की भेलहिया जे ओकरा लेल वर तकाउक
ना.: त ई गप थिकहि !!---लक्ष्मी , माए ठीके कहि रहल छथि...एखने सँ वर ताकब तखन ने दू चारि वर्षक बाद वर भेटत !!...एत' त दुनू समस्या थिक ने--एक त कैंचा गीनू आ चपलो खिआउ
लक्ष्मीः से त बुझलौं जे मिथीला मे निक वर भेटनाई एतेक सस्ता नञि, मुदा, एखन ओकर व्यसे की थिक--मात्र पन्द्रहम वर्ष !! एखन ओकर खेलबाक-कुदबाक पढबा-लिखबाक व्यस थिक , सासुर बैसबाक नञि !! जे अपनाके निक जँका नञि डेब सकैत अछि ओ सासुरके कोना डेबत  !!!
ला.काकीः एकटा नञि ने चारिटा बिआएल छी ओहो तरे उपरे, साँसों  लेबाक फुर्सत नञि भेटत !!!!
लक्ष्मीः रहे देथुन ! जे भगवती जन्म देलखिनहाँए उहे पार-घाट लगौथिन । हमरा बेटा नहि अछि त कि, बेटीएके पढा-लिखा बेटा लायक बनाएब...
ना.: ...की बेटी विआहके बाद नहि पढि सकैत छथि?? पढे वाली हेती त सासुरो मे पढि लेती..
लक्ष्मीः...हमरो आहाँ पढेलौं ने ?? हमहुँ अपना जमाना मे फस्ट डिवीजन सँ पास भेल रही ।विआह भेला बाद लोक घर-गृहस्थी मे लागि जाइत अछि आ पढाई-लिखाई भन्सा घरक चार पर रखा जाइत अछि!!!!!
ना. अच्छा, ठीक थिक, ओ जतेक पढत हम पढाएब । आब भूख लागल अछि शिघ्र भोजन लगाउ ।  हम स्नान क अबैत छी ।।।।
(पर्दा खसैत अछि)
दृश्य नवम समाप्ति

बटोही

"बटोही"
हम बाटके  बटोही असगर
छोड़ि देलक  सभ संग हमर
मुदा हम स्वयंके नहि छोड़लौं
नहि कहियो कोनो बाधा सँ डड़लौं
नहि कोनो विपति सँ मानलौं हार
कर्मक बाट मे जे भेटल
सहर्ष केलौं स्वीकार
आ निरन्तर आगू बढ़ैत गेलौं
किएक कि----
बुझल छल हमरा सूर्यक सत्य
हुनक नित्य उगनाई-डूबनाई
हम कतेको बेर नपने छलौं
धरती सँ आकाशक ऊँचाई
हम कतेको बेर आगि मे जरि
अनुभूति केने छलौं आगिक ताप
तांए नहि मानलौं कहियो हार
आ निरन्तर आगू बढ़ैत गेलौं...
कर्मक बाट पर
हम बाटके बटोही असगर
एखनो जेबाक अछि बड्ड दूर
एखनो करबाक अछि बड्ड किछु
चाहे केओ संग दैथ वा नहि
हम त धेने रहब अपन कर्मक बाट
हम बाटके बटोही असगर............
:गणेश मैथिल

बुधवार, 30 सितंबर 2015

natak..Jagu...drishya 8

नाटक: जागु
दृश्य: आठ, समय: दिन,
स्थान: रास्ताक दृश्य
(गीता स्कूल सँ अबैत..पाछाँ-पाछाँ रहीम सिटी बजाऽ गीताके छेड़ रहल अछि)
रहीम: हे ऐ गीता रानी! सुनै नहि छी !! कने घुरि ताकू ...
गीता:(घुमैत)....सुनै छी ,मुदा, सुनि कऽ बहीड़ बनल छी..हम तोरा सन लुच्चा लफंगाक संग गप नहि करए चाहैत छी...
रहीम:...ए...ह ! तोहर एह पितेनाई हमरा ह्रदयके पीघला दैत अछि...
गीता:...ताँए ने कहै छिऔ हमरा सँ बचि कऽ रहिएँ , कहीं कहियो देह नै पीघैल जाउ...
रहीम:(गीताके हाथ पकड़ैत)...गै छौड़ी !!...बड्ड बजै छें...एखन जँ रफा दफा कऽ देबौ त के काज एतौ(गीता सँ जबरदस्ती करबाक प्रयास)
गीता:(अपनाके छोडेबाक प्रयास करैत)...छोड़...छोड़ !!..बजरखसुआ...सरधुआ..
रहीम: बाजऽ बाजऽ आब...बड्ड फुड़फुराई छलहाँए
(मोहीतक प्रवेश)
मोहीत:(जोर सँ)..रहीम...छोड़िदे गीताके
रहीम:..आ..आ..तुहूँ रसपान कऽ ले
मोहीत:..रहीम...अन्तिम बेर कहै छीऔ...छोड़िदे गीताके..नहि त...
रहीम:...नहि त की ??...मोहीत तूं त हमर मित छें..ताँए त कहै छीऔ बाँटि चुटि खाऽ लेल...या कहिं बिल्टू भाईके जादू त नै चलि गेलौ तोरा पर ??
मोहीत:..हाँ, हम सुधैर गेलौं..बिल्टू भैया हमर सभक जिनगी सुधारि देला आ तोरो कहै छीऔ सुधरिजो
रहीम:...वाह भाई वाह !!!...जातियो गवेलौं आ सुआदो नहि पेलौं..नै..नै आई नै काहिल सँ हमहुँ सुधरि जाएब, मुदा, आई त रसपान करऽ दे(फेर बलजोरी करैत)
(मोहीत गीताके छोड़ा दैत अछि फेर दुनू मे मारा पिटी)
(अकबरके प्रवेश)
अकबर:(दुनूके छोड़ाबैत) किएक तूं सब मारि कऽ रहलाहाँए ?..काहिल तकि तूं दुनू एकहि थारीके चट्टा बट्टा छलहाँए
मोहीत: कक्का , रहीम गीताक संग र्दुव्यहार कऽ रहल छल
अकबर: तोबा! तोबा!! (रहीमके झाँपर मारैत)...तोरा लाज नहि होइत छौ ?..गामक बेटी-बहीन संग र्दुव्यहार क रहल छें..संस्कारहीन भ गेल छें तूं सब..अरे गामक बेटीक रक्षा केनाइ तोहर सभक कर्तव्य थिकहुँ आर तूंही सभ एहि तरहक....(गीताक माथ पर हाथ राखैत)...अरे देख!!..बेटी भ पढि-लिख डाक्टर बनि समाजक सेवा लेल तैयाल अछि आर तूं सब ताश आ शराबमे जिनगी बिता रहल छें...
रहीम:(अकबरक पएर पकरैत)...कक्का , हमरा माफ क दिअ..आईके बाद गामक प्रत्येक बेटी हमर बहीन अछि..
अकबर: माफी हमरा सँ नहि गीता सँ माँग..
रहीम:गीता बहीन हमरा माफ क दिअ !!!
गीता: आहाँ सुधरि जाउ एह आहाँक माफी अछि...कहल गेल छै "जँ भोरक हेराएल साँझमे घर आबि जाए त ओकरा हेराल नहि कहैत छियहि"
रहीम:(मोहीत सँ)..चल भाई..आई सँ हमहुँ बिल्टू भैया सँ पढब
मोहीतः (रहीमके कंठ सँ लगबैत)..हाँ भाई !! हमरा सभके किछु बनि निक काज क देखेबाक अछि
अकबर: अरे , दुनियाँमे किछु असम्भव नहि थिक..जखने जागू तखने भोर..बुझू आहाँ सभ लेल एखने भोर भेला एखने सँ अपन कर्म मे लागि जाउ
गीता:(मोहीत रहीम सँ) भाई, परसों राखी छै आहाँ सब राखी बन्हबाबअ जरूर आएब...हमरा भाए नहि अछि ने !!!!!
मोहीतः गीता बहीन...आहाँ एना जुनि सोचू...की हम सब आहाँक भाए नहि छी??
रहीम: गीता बहीन हम सब जरूर आएब..आहाँके कहियो भाएक खगता नहि होबे देब
अकबरः चलू आब चलै जाई जाउ...
(सभक प्रस्थान)
पर्दा खसैत
दृश्यक समाप्ति

सोमवार, 28 सितंबर 2015

हे ! हे!! हे!!!
एहन की पाप करै छी
जीबते जी बेटा बेचै छी
दुर...छीं ! छीं !! छीं !!!
पुतहुओ चाही लिखल-पढल
ताहु पर छी कैंचा लेल अड़ल
दुर...छीं ! छीं !! छीं !!!
जँ अपन कमाइ सँ नहि घर बनल
त की बेटा बेच पीटब कोठा ??
दुर...छीं ! छीं !! छीं !!!
यौ महाशय एक गप कहु
की आहाँक बेटा घी मे नहाएल
हमर बेटी पानिए पर पोशल ??
दुर...छीं ! छीं !! छीं !!!
यौ जँ हमरा बेटीक लेल चाही वर
त अहूँ बेटाक लेल चाही कनिञां
तोड़ि विधाताक बनाएल विधी
बेटा बेच किएक बनै छी बनियां ??
दुर...छीं ! छीं !! छीं !!!
     : गणेश मैथिल
   सचिव, दहेज मुक्त मिथिला

बुधवार, 23 सितंबर 2015

नि नाटक: जागु

नाटक: जागु
दृश्य: सातम, समय: दुपहरिया
 स्थान: गाछीक दृश्य
(स्टेज पर एक कोना मे नन्हकु काका,रहीम,सोहन आ मोहीत ताश खेलाइत, बगलमे शराबक बोतल, गीलाश आ पानि राखल। दोसर दिश सँ बिल्टूके गीत गुनगुनाइत स्टेज पर प्रवेश मुदा ध्यान ताश खेलाइत व्यक्ति दिश नहि)
रहीम: (बिल्टूके देखैत) रौ सोहन ! देख, बिल्टू भैया ! चल नुका क निकैल जाइत छी...
सोहन: दुत्त बुड़ि बागर ! केकरा सँ डेराइत छें ? बिल्टं सँ ? जे खुदे बिल्टल छै
मोहीत:...चल चल पत्ता फेंक, तुहूँ एरे गेरे नथ्थु खेरे सँ डेराए लगैत छें
नन्हकु काका:...कहे लेल बी.ए पढ़ल अछि, मुदा मुफ्तक रोटी तोड़ैत अछि! भरि दिन घरे घरे उपदेश झारैत रहैया...(सभ केयो जोर सँ ठहाका लगाबैत)
बिल्टू: (सब गप सुनि सोचैत आगु बढैया आ नन्हकु सँ)...ठीक कहलौं!!
हम भाग्यक मारल बी.ए. पास क मुफ्तक रोटी तोरैत छी, मुदा, आहाँ त समाजक 'वर्तमान आ भविष्य' दुनू अन्हार क रहल छी ! ठीक कहल गेल छै--जेकर बड़का छुलाहि तेकर छोटका भड़े लागल खाए--आहाँके त चुल्लु भइर पानि मे डूबि मरबाक चाही
मोहीत: (तमतमाल)...बिल्टू भाई ! ई अनेरोंके बकवाश उपदेश नहि झारू ! ताश खेलबामे डिस्टर्ब भ रहल अछि
सोहन:...भलमन्सी अछि त एत' सँ चलि जाउ नहि त गप बिगैर जाएत
बिल्टू: (सोहन आ मोहीतके गाल पर झापर मारैत)...की कहलाँ ?? गप बिगैर जाएत !!..अरे अभागा सब, भाग्य त तोहर सभक बिगैर गेल छौ, जें पढबाक लिखबाक अवस्थामे जुआ आ शराब मे लागल छें ! अपन आ समाज दुनूके भविष्य अन्हार क रहल छें !!! (बिल्टूके तमशाएल देख रहीम भागि जाइत अछि)
 सोहन: (कापैंत)...ई सभ नन्हकु...
बिल्टू:....अरे मुर्ख सभ ! नन्हकु काका त जिनगीक अन्तिम पड़ाव मे छथि, मुदा, तोहर सभक पुरा जिनगी बाँचल छौ, एखनहुँ समय छौ सुधैर जों । सभ्य आ संस्कारी मनुष बनबाक चेष्टा कर । पढबाक लिखबाक मतलब नौकरीए भेनाइ नहि होइत छै, शिक्षाक अर्थ थिक एक सभ्य, संस्कारी आ सुशिक्षीत व्यक्ति भेनाइ ।।
नन्हकु:(कल जोड़ैत)...बेटा! हमरा क्षमा क' द'!  हम शपत खाइत छी आइके  बाद शराब आ ताशके हाथ नहि लगाएब
बिल्टू:...क्षमा हमरा सँ नहि क्षमा एहि बच्चा सभ सँ माँगू जेकर भविष्य आहाँक कारणे बर्बाद भ रहल छै
नन्हकु:...बेटा तूं जे कहब' हम करबाक लेल तैयार छी
बिल्टु:...आहाँ बिगरल बच्चा सभके सही राह पर लाउ, जँ आहाँ सँ बच्चा बिगैर सकैत अछि त सुधैरो सकैत अछि
 सोहन-मोहीत:(एक संग)...भाईजी हमरा माफ क दिअ!! हमर आँखि खुजि गेल , हम सब पढ' चाहैत छी, मुदा
बिल्टू:...मुदा की ??
मोहीत:...भाईजी हमरा सभके त कखारा नहि आबैत अछि त स्कूलमे कोना दाखिला लेत?
बिल्टु:...हम साँझ क 'सम्पूर्ण शिक्षा अभियान' के तहत अनपढ सभके पढाबैत छियै, तुहूँ सभ आबि पढिहअ।
सोहन-मोहीत:..ठीक छै भैया हम सभ जरूर आएब ।।।
(सभके प्रस्थान)
पर्दा खसैत आछि

बुधवार, 9 सितंबर 2015

एहिमे हुनकर कोन दोष
जँ नहि सुनि सकली ओ
हमर ह्रदयक स्नेहक बोल
भ सकैत छै हुनक ह्रदय सँ
नहि जुड़ल हमर ह्रदयक तार ।।
मानलौं प्रीतक पीड़ा सँ पीड़ित छी
हुनकर चान सन मुखड़ा
देखबाक लेल उताहुल छी
हुनकर कोयली सन बोल
सुनबा लेल व्याकुल छी
मुदा ई जरूरी त नहि
ओहो हमरा सँ प्रेम करथि ।।

सोमवार, 7 सितंबर 2015

Geet

कनियाँ::
हमरा छोड़ि क' मुहँ मोड़ि क'
नहि जाउ पिया परदेश
कोना क' हेतै गुजारा
बिनु आहाँ कोना रहबै यौ
कोना हेतै खेती बाड़ी
कोना क' पेट भड़तै यौ...
पिया::
जाए दिअ परदेश सजनी
लाएब कमा क' ढ़ेउवा यै
लाएब निक निक साड़ी
लाएब आहाँ लेल गहना यै...
कनियाँ::
छोड़ू छोड़ू पिया
नहि चाही हमरा साड़ी
नहि चाही कोनो गहना यौ
संग आहाँके रही
इहए हमर कामना यौ....
पिया::
गाम मे आब रहि सजनी
नहि हेतै गुजारा यै
बुच्चा बुच्ची नम्हर हेतै
खर्चा आगू बढ़बे करतै
ताँए जाए दिअ परदेश हमरा यै ..
कनियाँ::
जा क' परदेश पिया
ढ़ेउवा त कमाएब यौ
मुदा गमाएब गामक जिनगी
आ गमाएब सादगी यौ
जुनि जाउ पिया परदेश
आहाँ गामे मे रहु यौ....

सोमवार, 31 अगस्त 2015

मित

कत' चलि गेल छलहुँ
हे हमर मनक मित
कल्पनाक रण बन मे
सदिखन बौआइत छल मन
उद्वलित भ जाइत छलहुँ
जखन याद अबैत छल
आहाँक निस्वार्थ प्रित ।।
प्रितक रीति नहि छल बुझल
ताँए नहि सुना सकलौ आहाँके
अपन ह्रद्यक स्नेहक गीत ।।
तखन बुझलौ प्रितक रीति
जखन प्रितक आगि मे जरै लगलौ
जखन बिनु पानि माछ जेना
अहुरीया काटि तड़पै लगलौ
तखन भेल आभाष
अहीं छलहुँ हमर मनक मित ।।

बुधवार, 5 अगस्त 2015

ई सार मच्छर
होइत अछि पैघ खच्चर
नान्हिएटा जन्त्र
मुदा अछि बड्ड ढिठगर
अपन सिद्यान्तकें अछि पक्का
बिनु चुनौती देने
अपन शिकारकें शिकार नहि करत
हनहनाइत कान लंग ललकारत
मुदा जखने हाथ उठाएब मारबाक लेल
चट द गाल पर चुम्मा ल भागि जाएत
आ भारी भरकम अहंकारी मनुख
निसहाय भ थपरी पीटैत रहत.......
मोदी जी
सब्र की अब बांध टूट रही है
पाकिस्तान की हिम्मत बढ़ रही है
बारम्बार वादा खिलाफी कर रहा है
पाले हुए सांप को भारत भेज रहा है
सीमाओं पर जवान शहीद हो रहे है
बारम्बार पाक हमे ललकार रहा है
आखिर कब तक हम धिरज बान्धे रहेगें ??
किस दिन काम आऐगें
मिसाइलें और परमाणु बम??
इस नापाक पाक के नस्ल को
नेस्तनाबूत कर दिजीए....
सौगन्ध आपको माँ भारती की ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।

मंगलवार, 4 अगस्त 2015

दोसरक देखाउंस "


दोसरक जँका बने चललौं
भंगइठ (बिगैर )  गेल जिनगीक सुर-ताल,
निके छलौं अपने जँका
सुखमय छल संसार।


चाल अपन जँ छोड़ब
जँ पकड़ब दोसरक राह ,
 मंजील त नहिये भेटत
भ जाएत जिनगी तबाह।

प्रकृति मौलिक थिक
प्रकृतिक सभ वस्तुक  मौलिकता ,
तहिना मन्नुखक जिनगी सेहो
सभके अपन विशिष्ठ्ता।


    :गणेश कुमार झा "बावरा "
     गुवाहाटी 

गुरुवार, 30 जुलाई 2015

kavita...satkarm nahi kelau

मृत्युशैया पर पड़ल जिनगी
कुहैक कहि रहल अछि
मनुखक जिनगी भेटल
मुदा कोनो सत्कर्म नहि केलौं
जिनगी भरि कमेलौं खेलौं
समाज  लेल किछु नहि केलौं
मनुखक जिनगी व्यर्थ गमेलौं
इहो जिनगी कोनो जिनगी जिलौं
बिनु किछु पदचिन्ह छोड़ने जा रहलौं
एसगरे कानैत आएल रहि
एसगरे कानैत जा रहलौं
मुदा एखनो मोका अछि
समाज लेल किछु क' जेबाक
हम अपन देहक अंग दान करै छी
हम मनुख छलौ से प्रमान दैत छी ...

रविवार, 26 जुलाई 2015

votak bela

आइब गेलै आब वोटक बेला
देखू नेता घूमता घरे घरे सखीया...
पएर पकरता माथ झुकौता
बाबू भैया सबटा कहता
बड़का बड़का भाषण देता
आइब गेलै आब वोटक बेला
देखू नेता घूमता घरे घरे सखीया...
वोटक बेला कतेको बनत टोली
नेता सब खेलत खुनक होली
केयो एहि टोली केयो ओहि टोली
जाति बिरादरीक नाम पर
लगाओत नेता सब वोटक बोली
आइब गेलै आब वोटक बेला
देखू नेता घूमता घरे घरे सखीया...
सावधान भ' जाउ वोटर
मंगनीक गहुम चाउर मे नहि फँसू
वोट दिअ ओहि नेताके
जे रोजगारक करा' जोगार
आइब गेलै आब वोटक बेला
देखू नेता घूमता घरे घरे सखीया...

मंगलवार, 17 मार्च 2015

हमर दुर्दशा सँ निक आहाँक दशा
आहाँ भैर मुन बहा लैत छी नोर
मुदा हमर आँखि बनल अछि थार ।

आहिस्ता चल जिंदगी

सभार अभय तिवारी जी:
आहिस्ता चल जिंदगी,अभी 
कई कर्ज चुकाना बाकी है 
कुछ दर्द मिटाना बाकी है 
कुछ फर्ज निभाना बाकी है 
रफ़्तार में तेरे चलने से
कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
रूठों को मनाना बाकी है
रोतों को हँसाना बाकी है
कुछ रिश्ते बनकर ,टूट गए
कुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए
उन टूटे -छूटे रिश्तों के
जख्मों को मिटाना बाकी है
कुछ हसरतें अभी अधूरी हैं
कुछ काम भी और जरूरी हैं
जीवन की उलझ पहेली को
पूरा सुलझाना बाकी है
जब साँसों को थम जाना है
फिर क्या खोना ,क्या पाना है
पर मन के जिद्दी बच्चे को
यह बात बताना बाकी है
आहिस्ता चल जिंदगी ,अभी
कई कर्ज चुकाना बाकी है
कुछ दर्द मिटाना बाकी है
कुछ फर्ज निभाना बाकी है ! अभय
आजुक दिन बड्ड शुभ है
मोर घर बेटी पधारो
बेटी पधारो खुशींयाँ है लायो
आँगन बिच नाचत मोर है
मोर घर बेटी पधारो.......
मन रखबै सजनी हमर प्रित
चाहे कतबो भ जाइथ आहाँक मित ।
नहि छुटत कखनो हमर नेह
चाहे कतबो बदलैथ ह्रदय देह ।

बुधवार, 4 मार्च 2015

Rahul ki Vyatha

"राहूल  की व्यथा "
 थक चुका हूँ   हार हार कर
सूझता नहीं कोई राह
लेकर मोदी अंकल से पंगा
हो गयी पार्टी अपंग !!!!!
दिग्गी जैसा दूरदर्शी मार्गदर्शक
करा दिया पार्टी का बेरा गर्त
पग पग पर खड़ा है चमचा
समझता मुझको छोटा बच्चा !!!!!
मोदी अंकल बड़े भयंकर
मैं छोटा बच्चा नादान
वो राजनीति के बड़े धुरंधर
मैं ठहरा राजनीतिक शिशु नवजात !!!!!
ना जाने क्या क्या  हथकंढे अपनाया
ना जाने कितने आरोप लगाया
सूट की किमत दस लाख बताया
मोदी अंकल फिर मारी बाजी
सूट चार करोड़ तइस लाख में बिकाय !!!!!
अब रहा न गया
देखी न गयी अपनी चीर हरण
चारु दिशा लगी ठहाका
छलनी छलनी हो गयी मेरी सीना !!!!!
मैं क्या करता बता मेरी माँ
तेरे चमचों के बिच घिर कर
मैं घूट घूट कर मरता था
इसलिए
मैं छोड़ तेरी राजनीतिक पल्लू
दूर बहुत दूर आ गया हूँ !!!!!!!!!!!!!!!!!!!
(so sorryyyyyyyy)


मंगलवार, 3 मार्च 2015

Faguk fuharrrrrrrrrrrr

उपस्थित समस्त भंगीएल फगुएल श्रोता केँ
गणेश झा "बाबरा" "मैथिल" के रंगाएल प्रणाम !!
हमर फकड़ा आहाँके नीक लागत
हम कनेको खराब नहिं पाएब
जँ खराबे लागत त की करब
दुटा मालपुआ बेसी खाएब !!
जे सभ बिनु बिआहल छी हाथ उठाऊ
आहाँ सभ लेल विशेष पैकेज लाएल छी
निके छी बिनु बिआहल छी
नुआ लत्ता लिपीस्टिक अल्ता
जोड़' सँ बाँचल छी
निके छी साजल छी
बिनु नथिएल बड़द छी
बाजार मे बिकाए लेल अड़ल छी !!
जे सभ बिआहल छी ठार भ जाउ
कारण हमर बात लागत मिर्चाइ जेना
भ जाएब सीधा काँच कर्ची जेना
खा क कहू शपत
के नहिं छी अपन बहुअक भगत
जँ झूठ बाजब त कनियाँ काटत
जँ साँच बाजब त श्रोता काटत
मुदा आहाँक व्यथा हम बुझै छी
कारण धोकरा के माइर धोकरे बुझै छै !!!
...........

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

" फागुक फुहार "
आयोजक: पूर्वोत्तर मैथिली साहित्य संगोष्ठी
 दिनांक: 01-03-2015(रवि दिन )
समय: १ बजे सँ
स्थान: दुर्गा सरोवर, कामाख्या गेट
          गुवाहाटी--09
सम्पर्क:9864406875, 9864126176
समस्त मैथिलगण सादर आमंत्रित छी ...

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

faguk fuhar

देखू बिहार मे
केहन भेलै राजनीतिक जंग
दू घोर विरोधी लालू नीतिश
रोके खातिर मोदी के
भ गेला एक संग
ओहिना जेना होली मे
दू घोर विरोधी
एक दोसर के लगाबैथ रंग...
आशा अछि एहि बेर होली मे
चौधरी जी आ पाठक जी
एक दोसर के लगौता रंग....
  "फागुक फूहार"

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

Asmanjas

एक सूरज एक चन्द्रमा
एक धरती एक गगन
एक पानी एक पर्वत
एक उपवन एक पवन
एक जीवन एक मृत्यु
एक मानव एक खून
पर जाने क्यों इंसान
रंग बिरंगी मजहब बनाया
सब अलग अलग पथ बतलाया
मेरा अच्छा तेरा बुरा कहकर
सब लड़ता कटता मरता
असमंजस में है मन मेरा
किस राह चलूँ........
जे मन हौ से करिहाँए
नहि रोकबौ तोरा रे बौआ
मुदा एक निहौरा करबौ
नहि बिसरीहाँए अपन बोली रे बौआ.
चाहे जईहाँए कोनो देश
चाहे बनिहाँए कोनो हाकीम
मुदा एक निहौरा करबौ
नहि बिसरीहाँए अपन पाबैन तिहार रे बौआ ....

Garibak Aah

कहिया धरि रहतै जिनगी अन्हार
कहिया सूरजदेव करथिन इजोत
नेतबा बेटबा नित्य हमरे लेल
करैत रहैत छै नव नव जुगार
मुदा हाए रे अभागल जिनगी हमर...
हमर गरीबी मजबूरी लाचारी पर
नित्य होइत अछि राजनीति
सत्ता हरपे खातिर सभ खाइथ
हमरे गरीबीक शपथ
मुदा हाए रे अभागल जिनगी हमर....
अपने पूँजीवाद के चमक मे धसल
धन सम्पति के बाढ़ि मे डूबल
हमर गरीबी समाजवाद मे फँसल
ताँए पेट आ आँखि दूनु सूखल
हाए रे अभागल जिनगी हमर .

     :गणेश कुमार झा "बावरा "
       गुवाहाटी 

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

डीलरक किरदानी

डीलरक किरदानी 

गाम गाम में शोर भेल अछि , 
डीलर अछि बेईमान 
सभक मुँहे सुनि रहल छी, 
डीलर अछि शैतान
लाबै छथि राशन जनता के नाम पर
आ तुरंत विदा भ जाइत छथि दुकान पर
दूकानदार सँ कनफुसकी क' क'
दस बजे रातुक समय द' क'
सुन दलान देखि अबीह' बौआ
एकटा बड़का बोड़ा ल' क'
पाई नगद तू लेने अबीह'
दाम में नै तू घिच - पिच करिह'
कियाक त' गारिक हार हमहि पहिरै छी
जनता के श्राप हमहि लैत छी
हाकिम के घुस हमहि दैत छी
तैयो हम चोरे कहबै छी
गौंआँ के बुरबक बनाबी
अपने हम हाकिम कहाबी
सब कियो आगा पाछा करैया
घुस में पान तमाकुल दइया
तैयो हम करै छी मनमानी
ककरो कोनो बात नै मानी
दस बोड़ा हम चीनी रखने
तोरे सब के लेल
बाँकी जे दू बोड़ा बाँचत
जनता के ठकी लेब
गाम में दस टा मुँहगर कनगर
मुंह तकर हम भरबै
बाँकी सब ठाम झूठ बाजी क'
चोरी हमहि करबै
अगिला खेपी तेल आनब
तू तखनहि रहिह' सचेत
रस्ते में तू ठाढ़ रहिह' पाई टीन समेत
गाम पर अनिते देरी
भ' जाइया हेरा फेरी
मुखिया जी बदमाशी करैया
टीन झोरा ल' एतय अबैया
दस किलो चीनी आ तेल
ओकरो मंगनी देबय पड़ैया
मुदा दस किलो चीनी आ तेल पर
मुखहिया जी सकदम
टकरा बाद जे मोन करैया
करै छी अपने मन
टकरा बाद किरानी सबके
झूठ बाजी छी हमहि ठकने
लोक सब हमर किरदानी के
महीना में दस टा दैत अछि दरखास
जा गांधी (पांच सौ ) द' आफिसर के
तुरंत करा दैत छी बरखास
घुसक छैक एखन जमाना
तेन ने हम छी बनल दिबाना
चारि साल धरि कहुना कहुना
ई कोटा चलि जाएत
पाँचम साल बुझह
सीमेंट जोड़ी दू तल्ला पिटायत
बेसी तोरा की कहिय'
एहि में घर बैसल बड्ड नफ्फा
मुदा आशीर्वाद में कखनो
घर घरायण सब सफ्फा 



(१९९२ के डायरी सँ )
Sanjay Jha -
नागदह , मधुबनी ,
मिथिला ------